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पृष्ठम्:वैशेषिकदर्शनम्.djvu/८८

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'वैशेषिक-दर्शन ।

जो मूल कारण हैं, वे सत्,हैं और-कारण-वाले नहीं, इस लिए नित्य हैं, और परम सूक्ष्म हैं, इस लिए परमाणु कहलाते हैं। सो पृथिवी, जल, तेज और वायुतो स्थूल भी हैं, इस लिए इन के तो परमाणु ही नित्य हैं, पर आकावा, काल, दिशा, आत्मा और मेन नित्य ही हैं, यह पूर्व दिखला चुके हैं ।

सं-सव अनित्य ही है, नित्य कुछ भी नहीं, ऐसा मानने वाले को उत्तर देते है

अनित्यइति विशेषतः प्रतिषेधभावः ॥ ४ ॥

‘अनित्य’ ऐसा प्रतिषेधभाव विोषरूप से हो सकता है,(कि पृथिवी अनित्यहै,वा सूर्य अनित्य है? इत्यादि। पर सामान्य रूप से निषेधही ही नहीं सकता, कि सव आनित्य हैं। वयोंकि अनित्य का प्रतियोगी जी नित्य है, वह यदि सिद्ध है, तो उस का अपलाप हो नहीं सकता, और यदि आसिद्ध है, तो अनित्य भी नहीं कह सकते, क्योंकि अभाव का निरूपण प्रतियोगी के विना हो ही नहीं सकता ।

स-प्रश्न-हम लोक में जितनी वस्तुएँ आकार वाळीं, कप वाली, रस वाली, वा स्पर्श वाली देखते हैं, वे सब अनित्य है, परमाणु भी इन धर्मोौ वाले हैं, इस लिए भनित्य होने चाहियें, इत्यादि का उत्तर देते हैं

अविद्या ॥ ५ ॥

अविद्या है (अर्थात् परमाणु के अनित्य होने का अनु मान-अविद्या है, क्योंकि आकार वाला होना इत्यादि हेतु त्वाभास हैं। क्योंकि वस्तु का नांवा आकारवा रूपरस आदि के कारण नहीं होता । यदि ये नाछा के कारण -होते, तो कभी