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अ. १ आ. १ सू. ८

सारे'अनुभव हो रहे हैं, पर हो.एक के पीछे ही दूसरा रहा है, क्योंकि अनुभव जो अलग २ हो रहे हैं। सो यह निश्चित है, कि आत्मा इन्द्रिय और विषयों का सम्वन्ध होने पर भी ज्ञान सारे. इकडे नहीं होते, एक अनुभव के समय दूसरे का अभाव होता है। अब प्रश्न यह है, कि यदि आत्मा इन्द्रिम और विषय का सम्बन्ध है ज्ञान का कारण हो, तव सारे ज्ञान इकडे क्यों न हो जायै, क्योंकि आत्मा का सम्बन्ध तो सारे इन्द्रियों के माथ है ही, रहा इन्द्रियों का विषयों से सम्बन्ध चह भी सव का सव के साथ है। इस प्रकार सव.की सामग्री के विद्यमान होते हुए सारे ज्ञान इकडे हो जाने चाहिये, पर होते नहीं, इस से सिद्ध है, कि आत्मा का सम्वन्ध सीधा इन्द्रियों के साथ नहीं होता, वीच में कोई और द्रव्य.भी है, जो इधर आत्मा ' से और उधर इन्द्रियों से जुड़ता है, और वह एककाल में एक ही इन्द्रिय से जुड़ता है, इस लिए एक काल में दूसरा ज्ञान नहीं होता । उसी द्रव्य का नाम मन है, और वह एक काल में एक ही इन्द्रिय से जुड़ता है, इस लिए अणु है । इसी लिए पुरुष कहता है, किं मेरा'मनं दूसरी 'ओर था, इस से मैंने नहीं सुना, चा नहीं देखा । सो यह युगपत् ज्ञानों का न होना मन का लिङ्ग है। इसी प्रकार स्मृति आदि भी मन के लिङ्ग हैं, जैसे देखने सुनने आदि क्रिया का एक २ निमित्त है, वैसे सोचने विचारने आदि क्रिया का भी अवश्य कोई निमित्तं है ।

  • वह निमित्त वाह्य इन्द्रियतो हैं नहीं, इस से'अवश्य कोई अन्त

रिन्द्रिय उस का निमित्त है;‘वहीं मन है। ' ' ' '