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पृष्ठम्:वैशेषिकदर्शनम्.djvu/६५

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अ. १ आ. १ सू. ८

ग्राह्य हैं, इस लिए उन सबका व्यञ्जक,भी एक ही है। यह नहीं होता; कि संख्या-की अभिव्यक्ति के लिए एक दीपक की और रूप की अभिव्यक्ति के लिए दूसरे की . दीपक की अपेक्षा हो।इसी प्रकार यादभेरीदण्ड संयोगभी शाब्दों काव्यञ्जक हो, तो ममान दशी यावत् शब्दों की एक ही, संयोग से अभिव्यक्ति हो जाए, क्योंकि वे सब श्रोत्र से ही ग्राह्य हैं। ।

संयोगाद्विभागाच्छब्दा च शब्दनिष्पाति-३१

संयोग से विभाग से और शव्द से शब्द की उत्पत्ति हात हैं ।

व्या-पहले पहले-शब्द संयोग से वा विभाग से उत्पन्न होता है; जैसे भरीदण्ट के संयोग से वा बांस के दो दलों के विभाग से शब्द उत्पन्न होता है । यह शब्दःतो वहीं उत्पन्न हुआ, जहां सैयोग और विभाग.हुआ । “पर शब्द वहीं*नहीं; दूरः-२ तकं मुना जाता है। यह इस प्रकार होता है, जैसे तालाब के मध्य में पत्थरफैकने से पानी में वहां वड़ी तरंग उठती है। उस तरंग से आगे २ चारों ओर तरंगें उठतीं जाती हैं, पर अगली २ तरंगें पहली २ से छोटी होती जाती हैं; अन्ततः नाछा हो जाती हैं । इसी प्रकार सैयोग और विभाग से पहले तीव्र शब्द उत्पन्न होता-है, फिर आगे चारों ओर तरंग-की-नाई शाब्द से शाब्द उत्पन्न होते.जाते हैं, और अगला २ शब्द मन्द २. होता हुआ अन्ततः' लीन हो जाता है। इस से सिद्ध है, कि शाब्द की उत्पति होती है, न कि अभिव्यक्ति । अभिव्यक्तिा में तो वही शब्द सर्वत्र एक ही जैसा. सुनाई देना चाहिये । अयंवा संयोग