सामग्री पर जाएँ

पृष्ठम्:वैशेषिकदर्शनम्.djvu/५७

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति
५५
अ. १ आ. १ सू. ८

द्रव्यूत्व नित्यत्वे वायुनाव्याख्याते ११

( दिशा का ) द्रव्य और नित्य होना वायु से व्याख्या

तत्त्वं भावनं १२, .

और एकखि सप्ता से (व्याख्या किया गया है); /

व्या-व्यवहार की सुगमता के लिए हम दिशा में नाना भेद कल्पना कर लेते हैं, वस्तुतः अखण्ड दिा : एक ही है.l, संगृति-उसी.का उपृपादन करते है

अदित्य-संयोगाद् भूतपूर्वाद्भविष्यतोभूताचः प्राची १४

हो चुके हुए, होने वाले वां होते हुए सूर्य संयोग से शाची होती है।

व्याः उदय होते हुए सूर्यका मथुम.संयोग-जिघूर हुआ है, उस को माची कहते हैं । हो चुके हुए, होने वाले.वा होते. हुए, ? कहने का यह अभिप्राय है, "कि उदय के समय मनुष्य वर्तमान, संयोग की दृष्टि से उस को माची कहता है। दोपहर के समय भूतपूर्व संयोग को लेकर, और प्रभात-के समय-भाव ष्यसेयोग को लेकर कहता है। अन्यदा भी:अपनी-स्वतन्त्र छनि के अनुसार,कभी भूत और कभी. भविष्वद् उदय को