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पृष्ठम्:वैशेषिकदर्शनम्.djvu/२६

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'वैशेषिक-दर्शन ।

वैशेषिक दर्शन ।

होता है, और उत्तरदेशसंयोग ही कर्म का नाशक है।

संगति-लक्षण भी असाधारण धर्म ही होता है, इसलिए तीनों के वैधम्र्य के प्रसंग में क्रमश: तीनों के लक्षण वतलाते हैं

क्रियागुणवत् समवायिकारण मिति द्रव्य लक्षणम् ॥१५॥

क्रिया और गुण वाला, और समवायिकारण,. यह द्रव्य का लक्षण है।

व्या०-क्रिया और गुण द्रव्यों में ही होते हैं, गुण और कर्म में नहीं, यद्यपि क्रिया काल आदि में नहीं होती, तथापि क्रिया होती द्रव्यों मे ही है, यह अभिप्राय है । और गुण तां सभी द्रव्यों में होत हैं । समवायिकारण भी सभी द्रव्य होते हैं। समवायिकारण उसको कहते हैं, जिस में कार्य समवाय सम्वन्ध से रहे । उत्पत्ति वाले गुण कर्म तो जिस द्रव्य के गुण कर्म हैं, उम में समवाय से रहते हैं, वही उन का समवायिकारण होता है, और कार्यद्रव्य अपने कारण द्रव्यो में समवाय से रहता है, वही उसका समवायिकारण होते हैं।

द्रव्याश्रय्यगुणवान् संयोग विभाग योर्नकार णमनपेक्ष इति गुणलक्षणम्॥१६॥ अर्थ-(द्रव्याश्रयी ) सदा द्रव्य के आश्रय रहने वाला, ( अ-गुणवान् ) गुणवाला न हो, (संयोगविभागयोः) योग और विभाग मे (नकाःप्) कारण न हो । (अनपेक्षः) अन" पेक्ष हो कर ( इति गुणलक्षणम्) यह गुण का लक्षण है।