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पृष्ठम्:वैशेषिकदर्शनम्.djvu/१९

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अ. १ आ. १ सू. ३
जव बाह्य प्रकाश सहायक हो । सो न दीखना ही त्म रूप है,

न कि कोई वास्तविक रूप ।

रूपरसगन्धस्पर्शः संख्याःपरियाणानि-पृथक्त्वं संयेोगविभागौ परत्वापरत्व बुद्धयः सुखदुःखे इच्छा द्वेषौ प्रयत्नाश्च गुणाः ॥ ६ ॥

(रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, संख्या, परिमाण, पृथक्क, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व, बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, ये ( १७ ) गुण हैं (और इन से अतिरिक्त गुरुत्व, द्रवत्, स्नेह, संस्कार, धर्म, अधर्म, शब्द ये सात भी गुण हैं, इन का वर्णन आग परीक्षा , इस प्रकार सारे गुण २४ हैं)

ु गेहै रूप, रस. गन्ध, स्पर्श, ये चारों इकडे कहे, क्योंकि य विशेष गुण हैं, इन से द्रव्यों की पहचान होती है। और ये पहले चार ही द्रव्यो में रहते हैं, और किसी में नहीं पाये जाते ।

संख्या (गिनती) पारिमाण (छुटाई बड़ाई लंबाई चुड़ाई (uantity ) पृथस (अलगपना Severalty) संयोग, और . विभाग । ये द्रव्यमात्र क्षे गुण है ।

परत्व और अपरत्व, (दूरी और निकष्टता) देश की अपेक्षा से वा काल की अपेक्षा से तो यह परे है, और यह वरे है इस प्रकार होती है, और यह उन मे दृोती है, जो एकदशी द्रव्य क्षों, विभु द्रव्यों मे घरे परे नही कहा जाना । और काल की अपेक्षा से नयाँ पुराना वा छोटा वड़ा यहप्रतीति होती है, और यह उन में होती है, जो उत्पत्ति वाले हों।