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पृष्ठम्:वैशेषिकदर्शनम्.djvu/१५८

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'वैशेषिक-दर्शन ।

एव नाशवान हैं, पर जिन मूल अवयवों से ये बने हैं, व नाशः वान नहीं हैं, वे परमाणु कहलाते हैं। सों पृथिवी जल तेज वायु के परमाणु नित्य हैं, और ये जो स्थूल पृथिवी जल तेज वायु हैं, ये अनित्य हैं। आकाशा एक ही सारे व्यापक है. अतएव नित्य है । काल का न आदि न अन्त है, अतएव वह एक है और नित्य है। अखण्ड काळ एक ही है, पर व्यवहार के लिए उस के भूत भविष्यत् वर्तमान भेद माने जाते हैं। दिशा का भी न आदि है, न अन्त है, अतएव वह भी नित्य है, अखण्ड दिशा एक ही है, पर व्यवहार के लिए उस के चारों पास की दृष्टि से चार, कोणों को मिलाकर आठ और ऊपर नीचे को मिलाकर दस वा चार के साथ मिला कर, छः मानी जाती हैं। आत्मा हरएक शरीर में अलग है, मन हरएक के साथ अलग है । आत्मा व्यापक है और मन अणु है।

७-गुण २४ हैं-(१) रूप (२) रस (३) गन्ध (४) स्पर्शी (५) संख्या (६) परिमाण (७) पृथक्तव (८) संयोग (९) विभाग (१०) परत्व (११) अपरत्व (१२) गुरुत्व (१३) द्रवत्व (१४) स्नेह (१५) शाब्द (१६) बुद्धि (१७) सुख (१८) दुःख (१९) इच्छा (२०) द्वेष (११) प्रयत्र (२२) धर्म (१३) अधर्म (२४) संस्कार ।

८-(१) रूप, धत नीला पीला आदि कई प्रकार का है। सव रूप आंख से देखे जाते हैं (२) रस, मधुर, खट्टा आदि कई प्रकार का है, सब रस रसना से जाने जाते हैं (३) गन्ध, के दो भेद हैं सुगन्ध औरदुर्गन्ध, सारेगन्ध गन्धघ्राण से जाने जाते हैं (४) स्पर्श, तीन प्रकार का है शीत, उष्ण, अनुष्णा )