व्या-योगी दो मकार के होते हैं। युञ्जान और युक्त । युञ्जान जो मन को एकाग्र करके समाध लगा सकते हैं। वे ममाधि में जाकर जव अपने मन को आत्मा में लगाते हैं, तव उनको आत्मा का प्रत्यक्ष होता है, किसी औरद्रव्य में लगाते हैं, तो उसका प्रत्यक्ष होता है । दृसरे युक्त वे कहलाते हैं, जो समाधि को समाप्त कर चुके हैं, उन को आत्मा सदा भत्यक्ष रहता है। अतएव उन को आत्म प्रत्यक्ष के लिए समाधि की आवश्यकता नहीं पड़ती । इसी तरह दूसरे द्रव्यों के प्रत्यक्ष के लिए भी समाधेि.लगाने की आवश्यकता नहीं पड़ती, जब जिस. में मन को. लगाएं, उसी को प्रत्यक्ष कर लेते हैं, इन युक्त योगियों के प्रत्यक्ष का इस सूत्र में वर्णन है । पूर्वं जो आत्मसंयोगविशेष से प्रत्यक्ष कहा है, वह युञ्जान योगियों के लिए कहा है। प्रत्यक्ष दोनों को ही होता है, भेद यह होता है, कि युभान योगियों को तो समाधि लगाने से प्रत्यक्ष होता है, और युक्त योगियों को समाधेि की आवश्यकता नहीं रहती ।
तत्समवायात् कर्मगुणेषु ॥ १४ ॥
उन (द्रव्यों) में समवेत होने सें कर्म गुणों में (युक्त युञ्जान दोनों को प्रत्यक्ष होता है) ।
आत्मसमवायादात्मगुणेषु ॥ १५ ॥
आत्मा में समवत होने से आत्मा के गुणों में (मत्यक्ष होता है) ।