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'वैशेषिक-दर्शन ।

वैशेषिक दर्शन ।

कारों ने इस कॉभी अत्यान्ताभावे के अन्तर्गत माना है, कइयों ने सामयिकाभाव नाम से यह अलग पांचवां अभाव माना है)

सै-लौकिक प्रत्यक्ष की परीक्षा की गई, अव अलौकिक की परीक्षा करते हुए कहते हैं

आत्मन्यात्ममनसो संयोगविशेषादिात्म प्रत्य क्षम् ॥ ११ ॥

आत्मा में आत्मा और मन के सैयौगविशप से आत्मा का प्रत्यक्ष होता है।

व्य-यंद्यपि 'अहं सुखी ? इत्यादि प्रतीति सें संव को अपने आत्मा का'मत्यक्ष होता है, तथापि उस प्रत्यक्ष में आत्मा का शारीर सें भेद प्रत्यक्ष नहीं होता । इस लिए आत्मा'को अप्रत्यक्ष कहा है (८ । १ । २) । पर जब योग से पुरुष । अपने स्वरूप को देखता है। तब योग समाधि द्वारा जो आत्मा और मन का संयोग होता है, उस संयोग विशेष सें इस्तामलक व आत्मा कां' प्रत्यक्ष होता है। और जैसयह आत्मा का मत्यक्ष होता है

तथा द्रव्यान्तरेषु प्रत्यक्षम् ॥ १२ । ।

वैसे अन्य द्रव्यों ( सूक्ष्म द्रव्यों परमाणु आकाश आदि) में भी प्रत्यक्ष होता है।

असमाहितान्तः करणा उपसंहृतंसमांधय स्तेषां च ॥ १३ ॥

जिन का अन्तःकरण समाधि राहत है, जो समाधि को समाप्त करं चुके हैं, उन को भी प्रत्यक्ष होता हैं ।