वैशेषिक दर्शन ।
पश्चात्मक नहीं, किन्तु एक २ भूत का कार्य हैं। हां अणुओं का संयोग प्रतिषिद्ध नहीं ।
भूयस्त्वान्धवत्वाच पृथिवी गन्धज्ञाने प्रकृतिः॥५
बहुत अधिक होने से गन्ध वाला होने से पृथिवी गन्ध ग्राहक (इन्द्रिय) में कारण है ।
घाण इन्द्रिय गन्ध का प्रकाशक होने से निश्चित होता है, कि इस में गन्ध मध्णन है, गन्ध की प्रधानता तब हो सकती है, जव इस में जल आदि की अपेक्षा पृथिवी का भाग बहुत अधिक हो । इस से सिद्ध है, कि पृथिवी घाण का कारण
तथाऽऽपस्तेजो वायुश्च रसरूपस्पर्शज्ञानेऽवि शषात् ॥ ६ ॥
वैसे जल तेज और वायु (क्रमशः) रस, रूप और स्पर्श के ग्राहक ( रसना, नेत्र और त्वचा इन्द्रिय) में कारण हैं।
अध्याय नवम-आङ्गिक प्रथम ।
स-नवम के प्रथम आह्निक में अभावों का प्रत्यक्ष घतलाना चाहते हुए अभावों के भेद बतलाते है
क्रियायुणव्यपदेशा भावात् प्रागसत् ॥ १ ॥
ांक्रया अभीर गुण के व्यवहार का अभाव होने के कारण पहले अभाव होता है।
व्या-जो यह मानते हैं, कि उपादान में उपादेय पहले ही। विद्यमान होता है, मट्टी में घड़ा पहले ही विद्यमान है, उत्पत्ति के अर्थ यही हैं, कि अव प्रकट होगया है। इस मत का खण्डन करते हैं, कि यह जो उत्पत्ति से पछेि उपलब्ध होता है, वह