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'वैशेषिक-दर्शन ।

देखे विना 'नीलरूप ? यह ज्ञान नहीं होता । परं जो निरा धर्म है, उस का ज्ञान किसी धर्म से नहीं होता, क्योंकि उस में कोई धर्मतो है ही नहीं। सो उस का ज्ञान अपने स्व कप से होता है । ऐसे धर्म सामान्य विशेष तथा सामान्य और इत्यादि, तथा द्रव्य गुण कर्म में सत्ता. और एक १४ व्यक्ति में वा एक-२. परमाणु में अलग २ विशेप, । ये सामन्य विशेप जिनःव्यक्तियों में रहते हैं, उन का ज्ञान तो.मामान्य विशेप धर्मकी अपेक्षा से होता है 1 पर सामान्य विशेषका अपना सेंहोता है, किसी धर्म से नहीं, क्योंकि सामान्य विशेषों में-सामान्ये विशेष धर्म नहीं रहते!।

संामान्यविशेषापेक्षं द्रव्यगुणकर्मसु ॥५॥

सामन्यवेिष की अपेक्षा वाला (ज्ञान ) होता है, द्रव्य गुण कर्म में (यह 'द्रव्य है,' यह द्रव्य को गुण कर्म से अलग करान वाला ज्ञान है, यह तभी हो सकता है, जवं द्रव्य का कोई ऐसाधर्म ज्ञात हो जाए, जो गुणोंचा कमों मेंन पायाजाय औरद्रव्यों में सभी में पाया जाय,वही सामान्यविशेष धर्म द्रव्यों मेंद्रव्यत्व है । इस'धर्म की अपेक्षा से द्रव्यज्ञानं होता है। इसी प्रकार 'गुणत्व' इस सामान्यविशेप धर्म की अपेक्षा से गुण,ौराकर्मत्व इससामान्यविशेष धर्म की अपेक्षा से कर्म ज्ञान होता है। इसी प्रकार गौ, नील, गमन इत्यादै जाति ( }