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अ. १ आ. १ सू. ८

न होने पर न.होने से - ? .

व्या-क्योंकि यदि यम में तत्पर भी हो, पर भोजनं शुचि न करे, तो उस भोजन का फल अभ्युदय नहीं होगा । इस लिए यम और शुचि भोजन दोनों आवश्यक हैं।

सं-धर्म की परीक्षा के अनन्तर, धर्माधर्मे में प्रवृत्ति के मूल राग द्वेष का निरूपण करते हैं

सुखाद् रागः ॥ १० ॥

सुख से राग होता है।

व्या-जब किसी वस्तु के भोगने से उस से सुख मिलता है, तो मुख से उस में राग उत्पन्न होता है। इसी प्रकार दुःख के भोगने से दुःखदायी सर्प आदि में द्वेष उत्पन्न होता है।

  • तन्मयत्वाच ॥ ११ ॥ ।

' तन्मय होने से भी ( राग होता है)

व्या-किसी अत्यन्त आभिमत वा अनभिमत विषय के दर्शन सें जो मवल संस्कार का उत्पन्न होना है, यह तन्मय होना है, ऐसे संस्कार, से आसक्त को सर्वत्र मिया का दर्शन भयभीत को सर्प का दर्शन होता है, इस संस्कार से भी राग द्वेष होते हैं। यद्यपि ये संस्कार भी सुख दुःख के भोग से ही उत्पन्न होते.हैं, तथापि ये-सैस्कार राग द्वेष को.उद्बुद्ध रखते हैं, इस लिए. अळग कहे हैं।

अदृष्ट से भी ( आत्मा की अदृष्ट शक्ति सें 'भी राग द्वेष होता है, जैसे यौवन में पुरुष कों स्त्री, और स्त्री को पुरुष में