जो द्रव्य अभीष्ट ( इन्द्रियों को अभिमत) रूप, रम, गन्ध स्पर्श वाला है, (यज्ञ में मन्त्र पढ़ कर जल से) मोक्षणं किया गया है वा (विना मन्त्र भी शुद जल से) शोधा गया है
अशुचीति शुचेि प्रतिषेधः ।। ६ ।।
अशुचि, यह शुचि के विरोध को कहते हैं (जिस द्रव्य का रूप रस गन्ध स्पर्श विकृत हो गए है । मोक्षण के योग्य प्रोक्षित नहीं हुआ, अभ्युक्षण के योग्य अभ्युक्षित नहीं हुआ, तो वह अशुचि है)
अर्थान्तरं च ।। ७ ।।
अर्थान्तर भी अशुचि होता है |
व्या- अशुचि केवल शुचि का अभावमात्र नहीं, इस से अलग भी है। जिस का रूपरसगन्ध स्पर्श अविकृत हैं, परद्रव्य चोरी का है, तो वह भी अशुचि है । शुद्ध भाजन मोक्षित भी जव भावना से दूषित है, तो अशुचि है।
अयतस्य शुचि भोजनादभ्युद्यो न विद्यते नियमाभावाद् विद्यते वा ऽर्थान्तरत्वाद् यमस्य ८
( आहिमा आदि) यम रहित को शुचि भोजन से अभ्यु दय नहीं होता है, क्योंकि उस के साथ नियम का अभाव रहा है ( यह पूर्वपक्ष कह कर सिद्धान्त कहते हैं) अथवा होता है, क्योंकि यह ! अहिंसा आदि ) अलग पदार्थ है ( वह अपने फल का जनक होता है, और शुचि भोजन अलग है, वह अपने फल का जनक है ) ।
असाति चा भावात् ॥ ९ ॥