पृष्ठम्:विक्रमाङ्कदेवचरितम् .djvu/472

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L S HH gi Hiiii GLiG tttt Liiii ggigiigg gg Diig ggDLL • विनाशयितुमन्विष्यति प्रेच्छति उपायं मृगयतीति भावः । कां कां वातूलतामुन्मत्ततां ‘वातूलः पुंसि वात्यायामपि वातसहे त्रिषु' इत्यमरः । कर्तुं सम्पादयितुं न धावति न वेगेन प्रवर्तते ॥ भाषा तुम्हारे न मिलने पर अर्थात् तुम्हारी विरहावस्था में, कामिनी, कूकने वाली कोयलों से क्रुद्ध होकर गुलेला चलाने का अभ्यास प्रारम्भ करती है जिससे गोली से कोयलों को मार कर उडादे जिसमें उनके शब्दों से विरहावस्था में कष्ट न हो । चन्दन की सुगन्ध युक्त वायु से अर्थात् मलयानिल से खिन्न होकर मलयाचल में दावानल लगने की अभिलाषा करती है। जिसमें सव चन्दन के वृक्ष जल कर भस्म हो जाएँ और विरहावस्था में चन्दन वायुओं से कष्ट न हो, और दुखित होकर, कामदेव और वसन्त की मित्रता का नाश करने के उपायों को खोजती है। कौन २ सा पागलपने का काम करने में वह शीघ्रता से नहीं प्रवृत होती है। सन्नद्ध माधवीनां मधु मधुपवधूकेलिगएडूषयोग्यं विश्राम्यन्ति श्रमेण क्वचिदपि मरुतो न क्षणं दाक्षिणात्याः । क्रीडाशैलीभवन्ति प्रतिकलमलिना कौसुमाः पासुकूटा चैत्रे पुष्पास्त्रमित्रेतदिहविरहिणां कीदृशी जीविताशा ॥६७॥ । अन्वयः माधीनां मधुमधुपबघूकेलिगण्डूषयोग्यं सत्रद्धम् । दाक्षिणात्याः मरुतः श्रमेण क्वचिदपि क्षणं न विश्राम्यन्ति । अलिनां कौसुमाः - - )