मेरी आज्ञा का सब राजा लोग पालन करते हैं। दान और उपभोग के लिये मुझे द्रव्य की कमी नहीं है। आप के अनुग्रह से मुझे सब सुलभ है । मुझे युवराज बनाने का विचार स्थगित किया जाय । जगाद देवोऽथ मदीप्सितस्य किं वत्स धत्से प्रतिकूलभावम् । ननु त्वदुत्पत्तिपरिश्रमे मे स चन्द्रचूडाभरणः प्रमाणम् ॥३१॥ अन्वयः अथ देवः जगाद । वत्स मदीप्सितस्य प्रतिकूलभावं किं धत्से । ननु मे त्वदुत्पत्तिपरिश्रमे सः चन्द्रचूडाभरणः प्रमाणम् । अथ स्वपुत्रवचनश्रवणानन्तरं देवो राजा जगाद कथयामास । हेवत्स ! हे पुत्र ! ममेप्सितमभीष्टं मदीप्सितं तस्य मदभीष्टस्य मनोरथस्य प्रतिकूलभावं प्रातिकूल्यं विरोधमित्यर्थः । किं किमर्थ धत्से करोषि । नन निश्चयेन मे मम तवोत्पत्तिर्जन्म त्वदुत्पत्तिस्तत्र परिश्रमस्तपस्यादिकरणं तस्मिन् स चन्द्रःश्चूडायाः शिरस आभरणं भूषणं यस्य सः शिवः प्रमाणं साक्षी । स शिव एव जानाति तव जन्महेतोः यादृशं कठिनतपश्चरणं मयाऽनुष्ठितमतो मम मनोरथस्य विरोधम् विहाय तत्साधयति भावः । भाषा पुत्र की ऐसी उक्ति को सुनने के अनन्तर राजा ने कहा । बेटा ! मेरे अभीप्सित कार्य का क्यों विरोध करते हो । तुम्हारा जन्म होने के लिये मुझे तपश्चरणादि अनुष्ठान में कैसा परिश्रम करना पड़ा है यह चन्द्रशेखर शंकर ही जानते हैं। इसलिये मेरी इच्छा का विरोध न करी ।
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