पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९२

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नवमोऽध्यायः ७३ धातुदवीति यः प्रोक्तः क्रीडायां स विभाव्यते । तस्यां तन्वां तु दिव्यायां जज्ञिरे तेन देवताः ॥१० देवान्सृष्ट्वाऽथ देवेशस्तनुमन्यामपद्यत।+उत्सृष्टा सा तनुस्तेन सद्यो हस्तादजायत ॥११ तस्माबहःकर्मयुक्तो देवताः समुपासते । सत्त्वमात्रात्मिकां देवस्ततोऽन्यां सोऽभ्यपद्यत ॥१२ पितृवन्मन्यमानस्तान्पुत्रान्प्राध्यायत प्रभुः । पितरो ह्यपपक्षाम्यां रात्र्यह्नोरन्तराऽसृजत् ॥१३ तस्मात्ते पितरो देवः पुत्रत्वं तेन तेषु तत् । यया सृष्टास्तु पितरस्तां तन स व्यप (प) हत ॥१४ साऽपविद्धा तनुस्तेन)सद्यः संध्या प्र(हृ)जायत । तस्मादहस्तु देवानां रात्रिर्या साऽऽसुरी स्मृता ॥१५ तयोर्मध्ये तु वै पैत्री या तनुः स गरीयसी । तस्माद्देवसुराः सर्व ऋषयो मनवस्तथा १६ ते युक्तास्तासुपासन्ते ब्रह्मणो मध्यमां तनुस् । ततोऽन्यां स पुनर्ज ह्या तनं वै प्रत्यपद्यत १७ रजोमात्रात्मिकायां तु मनसा सोऽसृजत्प्रभुः । रजःप्रायात्ततः सोऽथ मानसानसृजत्सुतान् ॥१८ मनसस्तु ततस्तस्य मानसा(स्य)जज्ञिरे प्रजाः।(*दृष्ट्वा पुनः प्रजाश्वापि स्वां तनू तामपी(पौ)हत । दिवि धातु का अर्थ है क्रीड़ा । उस दिव्य शरीर से उत्पन्न होने के कारण ही वे देवतापदवाच्य हुए ।१०। देवेश ब्रह्मा ने देवों की भी सृष्टि करने के पश्चात् दूसरे शरीर को धारण किया। वह छोड़ा हुआ शरीर तुरन्त दिन के रूप में परिणत हो गया । इसलिये कर्मानुष्ठान के लिये दिन में उपासना करते है । तत्र ब्रह्मा ने सत्त्वमात्रात्मक दूसरे शरीर को धारण किया और पितर की तरह मानकर उन पुत्रों का ध्यान करने लगे उन्होंने तब दोनो पक्षों के साथ दिन और रात्रि के मध्य में पितरों का सृजन किया । इसीलिये उन देवगणों की पितृ संज्ञा हुई और उनका पुत्रत्व भी इसी कारण हुआ । जिस शरीर से ब्रह्मा ने पितरो को उत्पन्न किया उस शरीर को भी उन्होंने छोड़ दिया । वह छड़ा हुआ शरीर तुरंत सन्ध्या के रूप में परिणत हो गया । इसलिये दिन देवों के लिये, रात्रि असुरों के लिये और दिन और रात्रि के बीचवाली गरीयसी सन्ध्या पितरों के लिये सुखदायक हुई । तब से ऋषि देवता, असुर और मनु आदि ब्रह्मा के उस मध्यम शरीर (सन्ध्या) की उपासना करने लगे। ब्रह्मा ने फिर दूसरे शरीर को धारण किया । उनका यह शरीर रजःप्रधान था । उस रजो वहुल देह से उन्होंने तब कितने मानस सन्तानों को उत्पन्न किया । मन से उत्पन्न होने के कारण उनका नाम मानस पड़ा । प्रजाओं को देखकर उन्होंने अपने शरीर को फिर छोड़ दिया ।१११६। वह त्यक्त शरीर तुरन्त ज्योत्स्ना + इदमर्घ क . ख. पुस्तकयोर्नास्ति । “ इदमर्घ नास्ति क ख ग . पुस्तकेषु । *एतच्चिह्न्तर्गतग्रन्थो ङ. पुस्तके नास्ति । फo='