पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९१

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७२ अथ नवमोऽध्यायः देवादिवृष्टिकथनम् सूत उवाच ततोऽभिध्यायतस्तस्य जज्ञिरे मानसी (स) प्रजाः । तच्छरीरसमुत्पन्नैः कायैस्तैः कारणैः सह ॥१ क्षेत्रज्ञा समवर्तन्त गात्रेभ्यस्तस्य धीमतः । ततो देवासुरपितृमानवं च चतुष्टयम् २ सिसृक्षुरम्भांस्येतांश्व स्वात्मना समयूयुजत् । युक्तात्मनस्ततस्तस्य ततो मात्रा स्वयंभुवा । ॥३ तमभिध्यायतः सर्ग प्रयत्नोऽभूत्प्रजापतेः । ततोऽस्य जघनात्पूर्वमसुरा जज्ञिरे सुताः ४ असुः प्राणः स्मृतो विप्रैस्तज्जन्मानस्ततोऽसुराः । यया सृष्टाः सुरास्तन्वा तां तन्तुं स व्यपो(प)हत ।५ साऽपविद्धा तनुस्तेन (*सद्यो रात्रिरजायत । सा तमोबहुला यस्मात्ततो रात्रिस्त्रियामिका ॥६ आवृतास्तमसा रात्रौ प्रजास्तस्मात्स्वयंभुवः। दृष्ट्वा सुरांस्तु देवेशस्तनुमन्यामपद्यत अव्यक्तां सत्त्वबहुलां ततस्तां सोऽभ्ययूयुजत् । ततस्तां युञ्जतस्तस्य प्रियमासीत्प्रभोः किल ॥८ ततो मुखे समुत्पन्ना दीव्यतस्तस्य देवताः । यतोऽस्य दीव्यतो जातास्तेन देवाः प्रकीर्तिताः ॥e ७ अध्याय & सूतजी बोले---इसके अनन्तर ब्रह्मा के ध्यान करने से मानसी प्रजा उत्पन्न हुई । धीमान् ब्रह्मा के शरीर से कार्यकारणों के साथ क्षेत्रज्ञसमूह उत्पन्न हुआ। देव, असुर, पितृ और मानव स्वरूप चतुविध प्रजा की सृष्टि के लिये जलराशि के बीच वे आरमयोग में निरत हो गये । युक्तात्मा स्वयभू ब्रह्मा सर्ग के लिये ध्यान करने लगे, जिससे, सृष्टि-कार्य प्रारम्भ हुआ। उनके जघन से पहले असुर नामक सन्तान की उत्पत्ति हुई । विप्रगण प्राण को असुर कहते हैं; अतः उससे जन्म ग्रहण करने के कारण वे असुर कहलाये । ब्रह्मा ने जिस शरीर से असुरों को उत्पन्न किया, उस शरीर को उन्होंने छोड़ दिया । वह त्यक्त शरीर तुरन्त हो रात्रि रूप में परणित हो गया । वह शरीर तमोबहुल था, इससे रात्रि त्रियामा कहलाई। इसी से स्वयम्भू की समस्त प्रजा रात में तमोगुण से आवृत हो जाती है । देवेश ब्रह्मा ने असुरों को देखकर अव्यक्त ओर सत्त्वबहुल' दूसरे शरीर को धारण किया । उस शरीर को धारण कर ब्रह्मा अत्यन्त प्रसन्न हुए । तब आनन्द मग्न ब्रह्मा ते मुख से देवगण उत्पन्न हुये। उस आनन्दमय ब्रह्मा से उत्पन्न होने के कारण वे देव कहलाये ।१-६॥

  • धनुश्रिर्दान्तर्गतग्रन्थो घ. पुस्तके नास्ति ।