पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६५

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वायुपुराणम् संबोध्य सुतं वचसा पप्रच्छथोत्तरां कथाम् । अतः प्रभृति कल्पश्च प्रतिबंधिं प्रचक्ष्व नः ॥२ सभतीतस्य कल्पस्य वर्तमानस्य चोभयोः । कल्पयोरन्तरं यच्च प्रतिसंधिर्यतस्तयोः । एतद्वेदितुमिच्छाम अ(मो ह्य) त्यन्तकुशलोऽसि ३ लोमहर्षण उवाच अत्र वोऽहं प्रवक्ष्यामि प्रतिसंधिश्च यस्तयोः । समतीतस्य कल्पस्य वर्तमानस्य चोभयोः ॥४ मन्वन्तराणि कल्पेषु येषु यानि च सुव्रताः। यश्चायं वर्तते कल्पो वाराहः सांप्रतः शुभः ॥५ अस्मात्कल्पा(च यः कल्पः पूर्वोऽतीतः सनातनः । तस्य चास्य च कल्पस्य मध्यावस्थां निबोधत। प्रत्याहृते पूर्वकाले प्रतिसंधिं च तत्र वै। अन्यः प्रवर्तते कल्प जनाल्लोकात्पुनः पुनः ।।७ व्युच्छिन्नात्प्रतिसंधेस्तु कल्पाकल्पः परस्परम् । व्युच्छिद्यन्तेक्रियाःसर्चाः कल्पान्ते सर्वशस्तद तस्मात्कल्पानु कल्पस्य प्रतिसंधिर्निगद्यते। मन्वन्तरयुगाख्यानामव्युच्छिन्नाश्च संधयः ।€ परस्पराः प्रवर्तन्ते मन्वन्तरयुगैः सह । उत ये प्रक्तियार्थेन पूर्वकल्पाः समासतः ।१० तेषां परार्धकल्पानां पूर्वाह्यस्मातु यः परः। आसीत्कल्पो व्यततो वै पराधं न परस्तु सः ॥११ अन्ये भविष्या ये कल्पाअपरार्धाद्द्विगुणीकृताः । प्रथमः सांप्रतस्तेषां कल्पोऽयं वर्ततेद्विजः।१२ हो गये ।१। इसके बाद सूत का प्रिय शब्दों से सम्मान कर उन्होने पुनः आगे की कथा पूछी कि-है कल्प की कथा जानने वाले ! आप अत्यन्त कुशल है अब इसके बाद प्रतिसन्धि के विषय में हम लोगों को बतलाइये । बीते हुये और वर्तमान कल्प का जो मध्य काल है और उनकी जो प्रतिसन्धि है उसको हम लोग जानना चाहने है, आप अत्यन्त कुशल हैं ।२-३॥ लोमहर्षीण बोले-'अब मैं अतीत और वर्तमान दोनों कल्पों की जो प्रतिसन्धियां हैं तथा जिन कल्पो मे जो मन्वन्तर होते है, हे सुव्रत ! उसको वतला रहा हूँ ! यह जो वर्तमान कल्प वह है शुभ साम्प्रत या वाराह कल्प कहलाता है ।४३। इस कल्प से पूर्व का जो कल्प बीत गया है वह सनातन कल्प था। उस अतीत और इस वर्तमान वाराह कल्प की मध्य अवस्था के विषय में सुनिये ॥५-६ पूर्व कप के बीत जाने पर प्रतिसन्धि आती है, तब दूसरा कप जनलोक से आता है (७। बीच में प्रतिसन्धि के आ जाने से ही एक कल्प दूसरे कल्प से पृथक् होते है । पूर्व कल्प के बीत जाने पर उस अतीत वरूप को प्रतिसन्घि कहा जाता है । मन्वन्तर और युगों की अविच्छिन्न सन्धिर्यो मन्वन्तर युगों के साथ परस्पर प्रवृत्त होती हैं । जो प्रक्रिया पाद में संक्षेप में कहे गये है वे पूर्व कल्प है ।-१० उन पराधं कल्पों में इससे पूर्व जो प्रथम कल्प था वह तो व्यतीत हो चुका किन्तु द्वितीय पराधं कल्प अभी नही व्यतीत हुआ है ।११। अन्य जो भविष्य में आने वाले कप है वे अपराधं से गुणीकृत (अपराद्धे नाम से प्रसिद्ध है । द्विजो ! उनमें से पहला साम्प्रत नामक