पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/४८६

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

अष्टपञ्चाशोऽध्यायः ४६५ ४e ।।५० ५१ अक्षत्रियाश्च राजानो विशः शूद्रोपजीविनः। शूद्रभिवादिनः सर्वे युगान्ते द्विजसत्तमाः यतयश्च भविष्यन्ति बहवोऽस्मिन्कलौ युगे। चित्रवर्षी तदा देवो यदा स्यात्तु युगक्षयः सवें वाणिजकाश्चापि भविष्यन्त्यधमे युगे। (*शूद्राश्च यतिनश्चैव गूढवासास्तपस्विनः । लोलुपाः परदारेषु नष्टमार्गाः कलौ युगे।) भूयिष्ठं कूटमानैश्च पुण्यं विक्रीयते जनैः कुशीलचर्या पाषण्डंबृथारूपैः समावृतम् । पुरुषाल्पं बहुस्त्रीकं युगान्ते पर्युपस्थिते बहुयाचनको लोको भविष्यति परस्परम् । न्नध्यादनः क्रूरवाक्योऽनार्जवो नानसूयकः न कृते प्रतिकर्ता च क्षीणो लोको भविष्यति । अशका चैव पतिते तद्युगान्तस्य लक्षणम् नरशून्या वसुमती शून्या चैव भविष्यति । मण्डलानि भवन्त्यत्र देशेषु नगरेषु च अल्पोदका चाल्पफला भविष्यति वसुंधरा । गोप्तारश्चाप्यगोप्तारः प्रभविष्यन्त्यशासनाः ५२ ५३ ५४ ५५ ५६ एवं कर ग्रहण करनेवाले होंगे । वे राजागण क्षत्रिय जाति के न होकर । अन्य नीच जातियों में होंगे । उस कलिकाल में वेश्यगण शूद्रो के समान जीविका अजित करनेवाले तथा सभी ब्राह्मण लोग शूद्रों के नमस्कार करने वाले होगे ।४६-४। उस कलियुग मे वहुतेरे संन्यासी का वेश धारण कर जीविका चलानेवाले होगे, उस समय जब कि युग समाप्ति सन्निकट होगी, देव विचित्र वृष्टि करेगा, अर्थात् कहीं पर बहुत अधिक, कहो पर कुछ भी नहीं, कहीं पर अकाल में वृष्टि और कहीं पर वर्षाकाल में भी अनावृष्टि होगी । उस अघम कलियुग के सभी मनुष्य प्रायः वाणिज्य व्यवसाय करनेवाले होंगे । शूद्र लोग संन्यासियों का बाना धारण कर कौपीन धारण कर तपस्य निरत होंगे और सभी लोग दूसरे की स्त्री में चित्त लगकर अपने धर्म पथ से भ्रष्ट होंगे । व्यवसायी लोग प्रायः कपटपूर्ण तोल द्वारा वस्तुओं का विक्रय कर क्रेताओं को वंचित करेगे ५०-५१ व्यर्थ के बाहरी पाषाण्डों में अभिरुचि रखनेवाले प्रायः सभी प्राणी अतिशय दुःशील एवं अनाचारी होगे । उस युगान्त के समय पुरुषों की कमी और स्त्रियों की अधिकता होगी। लोगों में एक दूसरे से याचना करने की प्रवृत्ति बहुत बढ़ जायगी । लोग कन्चा मांस खाने लगेंगे, कटुभाषी होंगे, अतिशय कुटिल व्यवहार करनेवाले तथा परनिन्दक होंगे । उपकार करनेवालों का प्रत्युपकार कोई भी नहीं करेगा । सभी शरीर से अति क्षीण होगे और घोर पतित व्यवहारों में भी उन्हें आशंका नही होग–यही युगान्त का लक्षण समझिए ५२५४। सारी पृथ्वी मनुष्यों से रहित होकः प्रायः सूनी हो जायगी । देशों और नगरों में मण्डलों की स्थापना होगी । सारी वसुन्धरा अल्प जल से युक्त तथा अल्प फलचाली हो जायगी। पृथ्वी रक्षक कहानेवाले राजागण उस समय रक्षा करने में असमर्थ हो जाएंगे राज्य में शासन व्यवस्था

  • नास्त्ययं श्लोकः के. घ ङ पुस्तकेषु ।

फा०--५६