पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/४७६

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r " सप्तपञ्चाशोऽध्यायः ४५७ त्रिवर्षपरमं कालमुषितैरप्ररोहिभिः। एष धर्मो महानिद्र स्वयंभुविहितः पुरा १०१ एवं विश्वभुगिन्द्रस्तु मुनिभिस्तत्वद्दशभिः। जङ्गलैः स्थावरैर्वेति कैर्यष्टव्यमिहोच्यते ॥१०२ ते तु खिन्ना विवादेन तत्वयुक्ता महर्षयः । संधाय वाक्यमिन्द्रेण पप्रच्छुश्चेश्वरं वसुम् १०३ ऋषय ऊचुः महाप्राज्ञ कथं दृष्टस्त्वया यज्ञविधिनृप। उत्तानपादे प्रब्रूहि संशयं छिन्धि न प्रभो ।।१०४ श्रुत्वा वाक्यं ततस्तेषामविचार्य बलाबलम् । वेदशास्त्रमनुस्मृत्य यज्ञतत्त्वमुवाच ह । यथोपदिष्टैर्यष्टव्यमिति होवाच पार्थिवः १०५ यष्टव्यं पशुभिर्मेध्यैरथ बीजैः फलैस्तथा । हंसास्वभावो यज्ञस्य इति मे दर्शयत्यसौ ।।१०६ यथेह संहितामन्त्रा हिंसालिङ्गा महर्षिभिः। दीर्गुण तपसा युक्तैर्दर्शनैस्तारकादिभिः । तत्प्रामाण्यान्मया चोक्तं तस्मान्मा मन्तुर्हथ १०७ यदि प्रमाणं तान्येव मन्त्रवाक्यानि (णि) च द्विजाः। तदा प्रवर्ततां यज्ञो ह्यन्यथा नोऽनृतं वचः । एवं हृतोत्तरास्ते वै युक्तात्मानस्तपोधनाः ।।१०८ गये अंकुर रहित बीजों द्वारा ब्रह्मा ने यज्ञ का अनुष्ठान किया था, यह महान् धर्ममय यज्ञाराधन है । इस प्रकार उन तत्चदशं समागत मुनियों के कहने पर विश्वभोक्ता इन्द्र को यह सवाय उत्पन्न हो गया कि अब हमे स्थावर एवं जंगम इन दो प्रकार के उपकरणों मे से किस के द्वारा यज्ञाराधन करना चाहिये-ऐसा कहा जाता है । इन्द्र के साथ इस विषय के विवाद मे पडे हुये उन तत्त्वदर्शी महषियो ने इन्द्र के सथ समझौता करके इस विषय की मी मास के लिये राजा वसु से पूछ ।१०१-१०३। ऋषिगण बले हे परम बुद्धिमान् ! राजन् ! आप परम धार्मिक राजा उत्तानपाद के पुत्र तथा स्वयं महामहिमशाली है, अतः हम लोगों के इस संशय को दूर करे । कृपया यह बतावे कि आप ने यज्ञों कि विधि कस प्रकार की देखी है । ऋषियो की ऐसी वानी मुनकर राजा ने बलावल का कुछ भी विचार न करके केवल वेदों एवं शास्त्रों के यज्ञ विधिपरक वचनो का स्मरण करके यज्ञ सत्व के बारे में यह कहा कि शास्त्रीय उपदेशों के अनुसार यज्ञाराधन करना चाहिये ।१०४-१०५। शास्त्रो का ऐसा वचन है कि मेध्य पशुओ द्वारा, अथवा बीजों या फलो द्वारा यज्ञाराधन करना चाहिये; यज्ञ का स्वभाव ही हिसा है, ऐसा मुझे वेद वाक्यों से मालूम हुआ है । परम तपस्वी योगी महषियो द्वारा आविष्कृत मन्त्र समूह हिंसा के द्योतक है, और तारकादि दर्शनों द्वारा भी यज्ञों का हिंसा मूलक होना अनुमित है, इन्ही प्रमाणों के आधार पर मैने उपर्युक्त बातें कही हैं। अतः यदि आपको ये अनुचित भी प्रतीत हों तो मुझे क्षमा करेगे । हे महषि गण ! यदि उन मन्त्रादिकों के ०८५८