पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/४६६

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सप्तपञ्चाशोऽध्यायः ४४७ ॥७ ॥८ लौकिकेन प्रमाणेन विबुद्धोऽब्दस्तु मानुषः। तेनाब्देन प्रसंख्याय वक्ष्यामीह चतुयुर्गम् ।।५ निमेषकालः काष्ठा च कलाश्चापि मुहूर्तकाः । निमेषकालतुल्यं हि विद्याल्लघ्वक्षरं च यत् ।।६ काष्ठ निमेषा दश पञ्च चैव त्रिशच्च काष्ठा गणयेत्कलास्ताः। त्रिंशत्कलाश्चैव भवेन्मुहूर्तास्तास्त्रिशता रात्र्यही समेते अहोरात्रे विभजते सूर्यो मानुषदैविके । तत्राहः कर्मचेष्टायां रात्रिः स्वप्नाय कल्प्यते पित्र्ये रात्र्यहनी मासः प्रविभागस्तयोः पुनः। कृष्णपक्षस्त्वहस्तेषां शुक्लः स्वप्नाय शर्वरी । त्रिशच्च मानुषा मासाः पित्र्यो मासश्च स स्मृतः। शतानि त्रीणि ससानां षष्टया चाप्याधिकानि वै ।। पित्र्यः संवत्सरो हा ष मानुषेण विभाव्यते ।।१० मानुषेणैव मानेन वर्षाणां यच्छतं भवेत् पितृणां त्रीणि वर्षाणि संख्यातानीह तानि वै । चत्वारश्वघिका मासः पित्रे चैवेह कीतिताः ११ लौकिकेनैव मानेन अब्दो यो मानुषः स्मृतः। एतद्दिव्यमहोरात्रं शास्त्रेऽस्मिन्निश्वयो मतः १२ दिव्ये राहणी दर्ष प्रविभागस्तयोः पुनः । अहस्तत्रोदगयनं रात्रिः स्याद्दक्षिणायनम् १३ ये ते रात्र्यहनी दिव्ये प्रसंख्याते तयोः पुनः। त्रिशच्च ततानि वर्षाणि दिव्यो हू ष विधिः स्मृतः ।।१४ मानव वर्ष लौकिक प्रमाण से माना गया है उस मानव वर्ष के प्रमाण से इन चारों युगों का प्रमाण बतलr रहा हूँ। निमेषकालकाष्ठा, कला और मुहूतं –ये लौकिक काल के मापक हैं । एक लघु अक्षर के उच्चारण में जितना समय 'अपेक्षित है उसे निमेषकाल के बराबर जानना चाहिये । पन्द्रह निमेष की एक काष्ठ होती है. तीस काष्ठा की एक कला होती है, तीस कला का एक मुहूर्त होता है, और तीस मुहूतं का एक दिन रात होता ॥५-७। मनुष्य और देव दोनों के दिन रात का विभाजन सूर्य करता है, उसमें से दिन तो कमं विधान के लिये और रात्रि शयन के लिये बनायी गई है । पितरों का एक दिन-रात एक मास का होता है। उसमें से कृष्ण पक्ष तो उनका दिन और शुक्ल शमन के लिये रात्रि रूप है - इस प्रकार मानव का तीस मास पितरों का एक मास कहा गया है और तीन सौ आठ मानव मास का पितरों का एक वर्ष होता है ।८-१०॥ मानव वर्ष के मान के अनुसार उसके सौ वर्ष का पितरों का तीन वर्षों और चार मास कहा गया है । लौकिक मान से मानव के एक वर्ष का देवताओं का एक दिन इस शास्त्र में निश्चित माना गया है । इस दिव्य (दवताओं के वर्ष का विभाग इस प्रकार है, उसमें उत्तरायण तो दिन है और दक्षिणायन रात्रि ॥११-१२ ये जो दिव्य दिन रात कहे गये हैं, उसके तीस दिन रात का एक दिव्य मास होता है अर्थात् मानव के तीस वर्षों का एक दिव्य मास कहा जाता है । और इस प्रकार सौ मानव वर्षे के तीन मास दस दिन देवताओं के