पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/४५९

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४४० व्यतीपाते स्थिते सूर्ये लेखोखी ? तु युगान्तरे । युगान्तरोदिते चैव लेखोधं ? शशिनः क्रमात् ॥३७ पौर्णमासे व्यतीपाते यदीक्षेते परस्परम् । यस्मिन्काले स सोमन्ते स व्यतीपत एव तु ३८ कालं सूर्यस्य निर्देशं दृष्ट संख्या तु सर्पति । स वै पथं? क्रियाकलः कालात्सद्यो विधीयते । ३६ पूर्णेन्दोः पूर्णपक्षे तु रात्रिसंधिषु पूणिमा । ॐयस्मात्तामनुपश्यन्ति पितरो दैवतैः सह । तस्मादनुमतिर्नाम पूणिमा प्रथमा स्मृता ४० अरत्यर्थ भ्राजते यस्मात्पौर्णमास्यां निशाकरः। रञ्जनाच्चैव चन्द्रस्य राकेति कवयो विदुः ॥४१ अमा वसेतामृक्षे तु यदा चन्द्रदिवाकरौ । एकां पञ्चदशी रात्रिममवास्या ततः स्मृता ।४२ ततोऽपरस्य तैर्युक्तः पौर्णमास्यां निशाकरः। यदीक्षते व्यतीपाते दिवा पूर्ण परस्परम् । चन्द्रकवपराहे तु पूर्णात्मानौ तु पूणिमा ४३ विच्छिन्नां ताममावास्यां पश्यता समगतौ । अन्योन्यं चन्द्रसूयौं तौ यदा तद्दर्श उच्यते ॥४४ यदि कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा की प्रवृति होती है तो वह समय पूर्णमासी का है । चन्द्रमा और सूर्य परस्पर युग मात्र के व्यवधान पर अवस्थित रह विषुव रेखा के ऊपर समभूत्र में जब उदित होते हैं तो परस्पर दर्शन होता है । इसी का नाम व्यतीपात है । पूर्णमासी कों भो इस प्रकार परस्पर दर्शन होता है । सूर्य को ही आघार मानकर समय के विषय में विशेष संख्याओं की कल्पना की जाती है । सूयं ही समय का मार्गप्रदर्शक है और समय के ही अचीन सर्क्रियाओं का विधान माना गया है ।३५-३€। जिस रात्रि के संविभाग में पूणिमा तिथि हो. पूर्ण चन्द्रमा का प्रकाश हो, उसे अनुमती१ पूणिमा कहा गया है क्योंकि पितरगण देवताओं के साथ उसे देखते हैं । पूणिमा तिथि को चन्द्रमा अत्यन्त सुप्रकाशित होता है अतः चन्द्रमा के रंजन के कारण ही उसे कवि लोग राका कहते हैं। जिस पन्द्रहवी रात्रि को एक ही नक्षत्र में चन्द्रमा तथा सूर्य एक साथ विराजमान रहते है उसे अमावस्या कहते हैं ।४०-४२। जिस दिन के तीसरे पहर में चन्द्रमा और सूर्य पूर्णरूप में व्यतीपात की भांति परस्पर एक दूसरे को देखते है, उसे पूणमा कहते है । ऊपर कही गई जिस अमावस्या तिथि को चन्द्रमा और सूर्य एक ही स्थान मे समागत x यस्मादित्यारभ्य ततः स्मृतेत्यन्तग्रन्थस्य क्रमव्यत्यासः । ख. घ. ड. पुस्तकेषु वर्तते । १. जिस पूर्णिमा में एक कला न्यून चन्द्रमा सूर्यास्त से कुछ पहिले उदय होता . वह अनुमती कहलाती है यह पूणिमा चतुर्दशी युक्त होने के कारण देवताओं और पितरों–दोनों को अनुमत है, अतः अनुमती नाम से प्रसिद्ध है। सूर्यास्त के उपरान्त अथवा सूर्यास्त के साथ ही जिस तिथि को पूर्णचन्द्र उदित होता है वह राक कहलाती है । चन्द्रमा की रंजनकारिका होने के कारण यह का है–देवी पुराण से ।