पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/४५८

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षट्पञ्चाशोऽध्यायः ४३६ ततः पीतक्षये सोमे सूर्योऽसावेकरश्मिना। आप्याययत्सुषुम्नेन पितृणां खोमपायिनम् २८ निःशेषायां कलायां तु सोममाप्याययत्पुनः। सुषुम्नाप्यायमानस्य भागं भागमहःक्रमात् । कलाः क्षीयन्ति ताः कृ8णः शुक्लाश्वाऽऽप्याययन्ति तम् ।।२६ एवं सूर्यस्य वीर्येण चन्द्रस्याऽऽप्यायिता तनुः । दृश्यते पौर्णमास्यां वै शुक्लः संपूर्णमण्डलः । संसिद्धिरेवं सोमस्य पक्षयोः शुक्लकृष्णयोः ३० इत्येष पितृमान्सोमः स्मृत इद्वत्सरः क्रमात् । क्रान्तः पञ्चदशैः सार्ध सुधामृतपरिस्त्रवैः ३१ अतः पर्वाणि वक्ष्यामि पर्वणां संधयस्तथा । ग्रन्थिमन्ति यथा पर्वाणोज्ञवेण्वोभवन्त्युत ३२ तथाऽर्धमासपर्वाणि शुक्लकृष्णानि वै विदुः। पूर्णमावास्ययोर्भेदैनंन्थिर्या बंधयश्च वै ३३ अर्धमासास्तु पर्वाणि तृतीयाप्रभृतीनि तु । अग्नयाधानक्रिया यस्मात्क्रियते पर्वसंधिषु ३४ (*सायाह्न ऋतुमत्योऽसौ द्वौ लवौ काल उच्यते । लवौ द्वावेव राकाया: कालो ज्ञेयोऽपराह्निकः ।।३५

  • प्रतिपत्कृष्णपक्षस्य कालेऽतीतेऽपराह्निकः।) सयाको प्रतिपच्चैव स कालः पौणिमासिकः । ३६

सुधामृत को क्रमशः पितरगण अमावास्या को दो कला मात्र समय तक पान करते हैं। और इस प्रकार देवताओं के 'पान द्वारा चन्द्रमा के क्षीण हो जाने पर सूर्य अपनी उसी सुषुम्ना नामक रश्मि से सोमपान करने । वाले पितरों की तृप्ति करता हैं ।२६-२८ कलाओं से निश्शेष हो जाने पर सूर्य चन्द्रमा को पुनः पूर्ण करता है । सुषुम्ना द्वारा पूर्ण चन्द्रमा की कलाओं के एक-एक भाग को क्रमशः देवगण पन करते है । वे कलायें क्षीण होकर कृष्ण और पूर्ण होने पर शुक्ल कहती हैं, और इस प्रकार क्रमशः चन्द्रमा क्षीण और पूर्ण होता है। इस प्रकार सूर्य के पराक्रम से चन्द्रमा का शरीर पूर्ण होता है, और पूर्णमासी तिथि को उसका सम्पूर्ण मण्डल श्वेत दिखाई पड़ता है । शुक्ल और कृष्ण पक्ष में चन्द्रमा की हास और वृद्धि इसी प्रकार होती रहती है। पितृमान् चन्द्रमा इस प्रकार क्रमशः इवत्सर स्मरण किया गया है, और वह सुघामृत को प्रस्रवित करने वाली पन्द्रह किरणों से घिरा हुआ है ।२९३१। अब इसके उपरान्त पदों की संधियों का वर्णन कर रहा हूँ। जिस प्रकार ईख और वॉसों के पोर ठों वाले होते है, उसी प्रकार आधे मास पर होने वाली शुक्ल पक्षीय और कृष्ण पक्षीय तिथियो को भी काल का पर्व कहा गया है । पूणिमा और अमावस्या के भेद से उनकी ग्रन्थि और संघियाँ कही गई हैं। तृतीया आदि तिथियाँ आधे मास की पर्व तिथियां हैं, अन्याधान आदि सक्रियाएँ इसीलिए इन पर्वो की संधियों में की जाती हैं ।३२३४। सायंकाल के समय अनुमति का दो लव काल तथा राका का तीसरे पहर का दो लव काल सत्क्रियाओं के योग्य माना गया है । इसी प्रकार कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को भी अपराह्न काल में सक्रियाओं के योग्य माना गया है । सायंकाल के समय

  • धनुश्चित्रान्तशैतग्रन्थः कः पुस्तकेषु । +इदमर्थं नास्ति ख. घ. पुस्तकेषु ।