पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/४३

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२४ १६ १७ १८ सर्वस्य तस्यास्ति गतिर्विभक्तिरात्रह्मणो यावदियं प्रसूतिः। छन्दांसि वेदाः सऋचो यजंषि सामानि सोमश्च तथैव यज्ञः आजीव्यमेषां यदभीप्सितं च देवस्य तस्यैव च वै प्रजानाम् । वैवस्वतस्यास्य मनोः पुरस्तात्संभूतिरुक्ता प्रसचश्च तेषाम् येषामिदं पुण्यकृत प्रसूत्या लोकत्रयं लोकनमस्कृतानाम् । सुरेशदेवापेिंसनुप्रधान मापूरितं चोपरिभूषितं च रुद्रस्य शापात्पुनरुद्भवश्च दक्षस्य चाप्यत्र मनुष्यलोके । वासः क्षितौ वा नियमाद्भवस्य दक्षस्य चप्यत्र मनुष्यलोके मन्वन्तराणां परिचर्तनानि युगेपु संभूतिविकल्पनं च । ऋषित्वमार्यस्य च संप्रवृद्धिर्यथा युगादिष्वपि चेत्तदत्र ये द्वापरेषु प्रथयन्ति वेदान्व्यासाश्च तेऽत्र क्रमशो नियद्धः । कल्पस्य संख्या भुवनस्य संख्या ब्राह्मस्य चाप्यत्र दिनस्य संख्य

  • अण्डोद्भिजस्वेदजरायुजानां धर्मात्मनां स्वर्गनिवासिनां वा ।

ये यातनास्थानगताश्च जीवास्तर्केण तेपामपि च प्रमाणम् आत्यन्तिकः प्राकृतिकश्च योऽयं नैमित्तिकश्च प्रतिसर्गहेतुः। घन्धश्च मोक्षश्च विशिष्य तत्र प्रोक्ता च संसारगतिः परा च २० २१ २२ २३ अर्थात् ब्रह्मा से लेकर जो कुछ उत्पन्न हुआ सव को गति और विभाग को यहां वर्णन है। छन्द, वेद, ऋ यजु, साम, सोम, यज्ञ एवं इनके आश्रय और जो कुछ ईश्वर के या उनकी प्रजाओं के अभीप्सित पदार्थों है वे सब एवं पहले वैवस्त मनु को फिर उन लोकपूज्य पुष्यारमाओं की उत्पत्ति वणत है जिनकी प्रसूति से तीन लोक सुरेश देवीषि एवं मनु आदि वंश भरे पूरे और सुशोभित है ।१३१८ रुद्र के शाप से दक्ष का फिर मनुष्य लोक में जन्म ग्रहण करना, शिव का पृथ्वी पर नियम से रहना तथा दक्ष का प्रतिशाप पान, मन्वन्तरो का परिवर्तन, तथा युग-युग में संभूति, (उत्पति) उनका बारबार जन्म लेकर ऋषि होना, युगादिको में ऋषियों को वृद्धि सव यहाँ बताया गया है ।१९-२०द्वापर युगों में जो-जो व्यास वेदों को प्रकाशित करते हैं उनका क्रमशः वर्णन है; कल्पो, भुवनो तथा ब्रह्मा के दिन की गणना भी यहाँ दी हुई है । अण्डज, उद्भिषज, स्वेदज तथा जरायुज जीवों तथा धर्मात्मा स्वर्गवासियों एवं यातना स्थान में पहुंचे सभी प्राणियो का प्रमाण तर्क युक्त दिया गया है । प्रत्यक्ष के आत्यन्तिक, प्राकृतिक और नैमित्तिक तीन कारण, विशेष रीति से बन्ध और मोक्ष तथा 'अण्डोद्भिज्’ इयाः प्रयोगः ।