पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/३३

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति
१४
वायुपुराणम्

अनन्तरं विनिर्दिष्टं देवासुरविचेष्टितम् । जयन्या सह सत्ते तु यत्र शुक्रे महात्मनि ॥१५३
आसुरान्मोहयामास शुकरूपेण बुद्धिमान् । वृहस्पतिस्तु ताञ्णुक्रः शशाप समहाद्युतिः ।१५४
उक्तं च विष्णुमाहात्म्यं विष्णोर्जन्मादिशदनम् । तुर्वसुः शुक्रदद्वित्र देवयान्यां यदोरभूद् ॥
अचुक्रुधुस्तथा पूरुयेयातितनया नृपाः । अत्र वंश्या महात्मानस्तेषां पार्थिवसत्तमाः ।।१५६
कीर्यन्ते यत्र कार्थेन भूरिद्रविणतेजसः । कुशिकस्य च विप्रर्षे: सम्यग्यो धर्मसंश्रयः ।।१५७
बार्हस्पत्यं तु सुरभिर्यत्र शा(पत्रिहचुदत् । कीर्तनं जङ्गवंशस्य शंतनोर्वोर्यशब्दनम् ।१५८
भविष्यतां तथा राज्ञामुपसंहशब्दम् । अनागतानां सप्तानां मनूनां चोपवर्णनम् ।१५€
भगस्यान्ते कलियुगे क्षीणे संहारवर्णनम् । परार्थपरयोश्चैव लक्षणं परिकीर्यते ।१६०
ब्रह्मणों योजनाग्रेण परिमाणविनिर्णयः । नैमित्तिकः प्राकृतिकस्तथैवाऽऽत्यन्तिकःस्मृतः ॥१६६
विचेधः सर्वभूतानां कीर्यते प्रतिस्रः। अनावृष्टिर्भास्कराच्च घोरः संवर्तकोऽनलः ।१६२
मेघों दोकार्णवं वायुस्तथा रात्रिर्महात्मनः । कुख्यालऋण मुद्दिष्टं ततो ब्राह्म विशेषतः १६३
भूरादीनां च लोकानां सप्तनामुपवर्णनम्। कर्णान्ते चात्र निरयः पापानां रौरवाद्यः ॥१६४
ब्रह्मलोकपरिष्टातु शिवस्य स्थानमुत्तमम् । यत्र संहरमायान्ति सर्वभूतानि संक्षये ॥१६५
सर्वेषां चैव स स्चानां परिणामविनिर्णयः। ब्रह्मणः प्रतिसंसर्गं सर्वसंहाचऍनम् ॥१६६


के कार्य तथा जयन्ती के साथ महात्मा शुक्र के आसक्त ने शुक्र करके होने पर बुद्धिमान् वृहस्पति का रूप धारण असुरो को मोहित किय और तेजस्वो शुक्र ने असुरों को शाप दिया । १५१-१५४। तत्पश्चात् विष्णु का माहात्म्य तथा विष्णु के जन्म आदि की कथा है। फिर शुक्र की पुत्री देवयानी से यदु के तुवंसु उत्पन्न हुआ । ययाति के पुत्र अनु, ह्यु तथा पुरु राजा हुये । वह उनके वंशज जो उत्तम महात्मा नरेन्द्र बहुत धन और तेज वाले हुये उनका पूरा पूरा तथा विप्रषि कुशिक के धर्मपालन का वर्णन है। वृहस्पति के शाप को सुरभि ने हटाया फिर जह्नुवंश कीर्तन तथा शन्तनु के बल-वीर्य का । कया है । तदुपरि भविष्य में होने वले राजाओ तथा सात मनुओ का वर्णन है ।१५५१५e। अन्त में कलियुग के ण होने पर पृथ्वी का संहार बताया गया है तथा पराएं और पर के लक्षण कहे हैं । योजना में श्रद्धा के परिमाण का निर्णय किया है एवं नैमित्तिक प्राकृतिक तथा आत्यन्तिक तीन प्रकार के प्रलय समस्त भूतों के बताये गये हैं १६०१४{ फिर सूर्य से अवर्षण होने तथा घोर संवत्तंक अग्नि का वर्णन है । एकार्णव मेघ. वायु तथा महात्मा की (परमात्मा) रात्रि का वर्णन है तथा विशेष कर ब्राह्मकाल संख्या का लक्षण बतलाया है ।१६२-१६३ ॥ फिर भूः आदि सात लोकों का और पापियो के रौरव आदि नरकों का वर्णन है जहालोक के ऊपर शिव का उत्तम स्थान है । वहीं प्रलय में समस्त भूतों का संहार होता है । फिर सब जीवों के परिणाम का निर्णय तथा प्रह्या के प्रलय में सव के संहार का वर्णन है । फिर आठ प्रकार के आठ प्राण बताये गये हैं । एवं धर्म और