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वायुपुराणम्

प्रविभागश्च रश्मीनां नामतः कर्मतोऽर्थतः। परिणासगती चोक्तं ग्रहाणां सूर्यसंश्रयात् ॥१०३
यथा चाऽऽद्य विषात्प्राप्ता शंभोः कण्ठस्य नलत। ब्रह्मप्रसादितस्याऽऽशु विषादः शूलपाणिनः॥
स्तूयमानः सुरैर्विष्णुः स्तौति देवं महेश्वरम् । लिङ्गोद्भवकथां पुण्यां सर्वेपापप्रणाशिनम् ।।
विश्वरूपात्प्रधानस्य परिणामोऽयमद्भुतः। पुरूरवस ऐलस्य साहात्म्यानुप्रकीर्तनम् ।१०६
पितृणं द्विप्रकाराणां तर्पणं चक्षुतस्य वै । ततः पर्वाणि कीर्यन्ते पर्वणां चैव संधयः ।१०७
स्वर्गलोकगतानां च प्राप्तानां चाप्यधोगतिम् । पितृणां द्विप्रकाराणां श्राद्धेनानुग्रहो महान् ॥१०८
युगसंख्या प्रमाणं च कीर्यते च कृतं युगम् । त्रेतायुगे चापकर्षाद्धर्तायाः संप्रवर्तनम् ॥१०
वर्णानामाश्रमाणां च संख्यानां च प्रवर्तनम् । वर्णानामश्रममणां च संस्थितिर्धर्मतस्तथा ॥
यज्ञप्रवर्तनं चैव संवादो यत्र कीर्यते । ऋषीणां वसुना सार्ध वसोश्चाधः पुनर्गतिः ।।१११
प्रश्नानां दुर्वचस्त्वं च स्वायंभुवमृते मनुम्। प्रसा तपसश्चोक्त युगावस्थाश्च कृत्स्नशः ।।११२
द्वापरस्य कलेज संक्षेपेण प्रकीर्तनम् । देवतिर्यङ्मनुष्याणां प्रमाणानि युगे युगे ॥११३
कीर्यन्ते युगसामथ्र्यात्परिणाहोच्छयायुषः। शिष्टादीनां च निर्देशः प्रादुर्भावश्च कीर्यते ॥११४


विभाग एवं सूर्य की अपेक्षा से ग्रहों की चाल और मान बताया है । ब्रह्म की स्तुति रो प्रसन्न होकर विषभक्षक शूलपाणि शम्भु का कण्ठ तुरत विष से कैसे नीला हो गया उसका वर्णन है । १०३१०४ देवताओ ने विष्णु की स्तुति की और उन्होने महादेव की फिर सब पापो को नाश करनेवालो लिङ्ग की उत्पति की पवित्र कया है । विश्वरूप शिव से प्रधान प्रकृतिका यह विचित्र परिणाम तथा एक पुरुख के महात्म्य का वर्णन किया है । १०५ १०६। उसने दोनों प्रकार के पितरो का अमृत से कंसे तर्पण किया फिर पर्व तथा उनकी सन्धियो का वर्णन है । १०७ स्वर्ग लोक में पहुंचे हुये प्राणियो को भी अधोगति तथा दोनों प्रकार के पितरो का श्राद्ध से महान् कल्याण का है । युगों की संख्या तथा मान, सत्य युग तथा त्रेत युग में अपकर्ष के कारण एवं वर्णा, वर्णन आश्रमों और संख्याओं की प्रवृत्ति तथा धर्म से वर्णों तथा आश्रमों की स्थिति का वर्णन है ।१०८-११० ॥ यज्ञ की प्रवृत्ति तथा ऋषियों और वसु की शास्त्रार्थे की बात तया फिर वसु की अधोगति का कीर्तन है । प्रश्नों का कठिन होना तथा स्वायम्भुव मनु को छोड़कर तपस्या की प्रशंसा एवं सारी युगो की अवस्थाओ का वर्णन है। (?) द्वापर तथा कलि का संक्षेप से वर्णन तथा युग-युग के देवता, पशु-पक्षी एवं मनुष्यों के परिमाण का वर्णन है । युग के सामथ्र्य से आयु की वृद्धि और हास तथा शिष्ट आदि की उत्पत्ति तथा निर्देश का कथन है ।१११-११४॥


  • इदमर्घ नास्ति ख. घ. ङ. पुस्तकेषु ।