पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१०९०

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पश्चाधिकशततमोऽध्यायः = नामगोत्रे समुच्चार्य पिण्डपातन मिष्यते । येन केनापि कस्मैचित्स याति परमां गतिम् ब्रह्मज्ञानं गया श्राद्धं गोगृहे मरणं तथा । वासः पुंसां कुरुक्षेत्रे मुक्तिरेषा चतुविधा ब्रह्मज्ञानेन किं कार्य गोगृहे मरणेन किम् । वासेन किं कुरुक्षेत्रे यदि पुत्रो गयां व्रजेत् गयायां सर्वकालेषु पिडं दद्याविचक्षणः । अधिमासे जन्मदिने चास्तेऽपि गुरुशुक्रयोः न त्यक्तव्यं गया श्राद्धं सिंहस्थेऽपि वृहस्पती | चन्द्रसूर्यग्रहे चैव मृतानां पिण्डकर्मसु महातीर्थे तु संप्राप्ते क्षतदोषो न विद्यते । तथा दैवप्रमादेन सुमहत्सु व्रणेषु च ॥ पुनः कर्माधिकारी च श्राद्धकृद्ब्रह्मलोकभाक् सकृद्गयाभिगमनं सकृत्पिण्डस्य पातनम् | दुर्लभं कि पुननित्यमस्मिन्नेव व्यवस्थितिः प्रमादान्त्रियते क्षेत्रे ब्रह्मादेर्मुक्तिदायके । ब्रह्मज्ञानाद्यथा सुक्तिर्लभ्यते नात्र संशयः १०६६ ॥१५ ॥१६ ॥१७ ॥१८ ॥१६ ॥२० ॥२१ ॥२२ पर जिस जिस के नाम से पिण्डदान करता है, उस उस को वह पिण्ड शाश्वत ब्रह्म पद को प्राप्त कराता है । इस गया तीर्थ में नाम एवं गोत्र का उच्चारण करा पिण्डदान करने की विधि विहित है, वह चाहे जिस किसी का जिस किसी के उद्देश से दिया हो, परम गति प्राप्त कराता है। ब्रह्मज्ञान, गया श्राद्ध, गोशाला में मृत्यु लाभ एवं कुरुक्षेत्र में निवास – ये चार कर्म पुरुषों के लिये मोक्ष दायक हैं । किन्तु इन सबों से ब्रह्मज्ञान, गोशाला में मृत्युलाभ एवं कुरुक्षेत्र में निवास करने का क्या काम है, यदि पुत्र पवित्र गया तीर्थ की यात्रा करता है |१४-१७ गया तीर्थ में बुद्धिमान् पुरुष सभी समयों में पिण्डदान कर सकते हैं। किन्तु अधिकमास, जन्म दिन, गुरु एवं शुक्र के अस्त होने पर तथा वृहस्पति के सिंहराशि में स्थित होने के समय गया श्राद्ध को न छोड़ना चाहिए | चन्द्रमा और सूर्य के ग्रहण के अवसर पर मृतकों के पिण्ड कर्मों में महान् फल होता है | इस महातीर्थ में जाने पर क्षत का दोष नही लगता | दैवदुविपाकतया किसी महान् व्रण के हो जाने पर भी मनुष्य को गयातीर्थं में श्राद्ध कर्म का अधिकार रहता है, वह भी ब्रह्मलोक को प्राप्त करता है । जीवन में एक बार को गया यात्रा एवं एक वार का गया का पिण्डदान करने से प्राणी को जीवन में कुछ दुर्लभ नहीं रहता नित्य निवास करने वालों को तो फिर बात ही क्या है ? ब्रह्मादि देवताओं के परमप्रिय मुक्तिदायी इस गया तीर्थ में यदि कोई असावधानतया मृत्युलाभ करता है, तो उसे निस्सन्देह वैसी हो मुक्ति प्राप्त होती है, जैसी ब्रह्मज्ञान से ।१८-२२1 कीकट (मगघ) प्रभृति देशो में मृत्यु प्राप्त करने वाले पितरों को तारने के लिए बुद्धिमान् = न विद्यतेऽयं श्लोकः क. पुस्तके | 2 अयं श्लोक: ख. पुस्तके न विद्यते । अयं इलोको न क. पुस्तके ।