पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१०२१

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५००० घायुपुराणम् सर्वे सूक्ष्मशरीरास्ते विद्वांसो घनमूर्तयः | स्थितलोफस्थितत्वाच्च तेषां भूतं न विद्यते ऊचुः सनत्कुमाराचाः सिद्धास्ते योगर्धामणः । स्वाति नैमित्तिकों तेषां पर्याये समुपस्थिते स्थानत्यागे मनश्चापि युगपत्संप्रवतेते | ऊचुः सर्वे तदाऽन्योन्यं वैराजाः शुद्धबुद्धयः एवमेव महाभागाः प्रणवं संप्रविश्य ह । ब्रह्मलोके प्रवर्तामस्तन्नः श्रेयो भविष्यति एवमुक्त्वा तदा सर्वे ब्रह्मान्ते व्यवसायिनः | योजयित्वा तदाऽऽत्मानं वर्तन्ते योगर्धामणः तत्रैव संप्रलीयन्ते शान्ता दीपाचपो यथा । ब्रह्मकायमवर्तन्त पुनरावृत्तिदुर्लभम् लोकं तं समनुप्राप्य सर्वे ते भावनामयम् । आनन्दं ब्रह्मणः प्राप्य अमृतत्वाय ते गताः

  • वैराजेभ्यस्तयैषोर्ध्वमन्तरे षड्गुणे सतः । ब्रह्मलोकः समाख्यातो यत्र ब्रह्मा पुरोहितः

ते सर्वे प्रणवात्मानो बुद्धशुद्धतपास्तथा । आनन्दं ब्रह्मणः प्राप्यामृतत्वं च भजन्त्युत द्वंद्वैस्ते नाभिभूयन्ते भावत्रयविवर्जिताः । आधिपत्यं विना तुल्या ब्राह्मणस्ते महौजसः प्रभावविजयैश्वर्य स्थितिवैराग्यदर्शनैः । ते ब्रह्मलौकिकाः सर्वे गति प्राप्य विवर्तनील ॥७४ ॥७५ ।७६ ॥७७ ॥७८ ।।७६ ॥५० ॥८१ ॥८२ ॥८३ ॥८४ स्थित रहने के कारण उनके शरीर मे भूतो का सम्पर्क नहीं रहता १७४१ दस कल्प के उपरान्त वैराज लोक से विवर्तन का अवसर जब उपस्थित होता है तब वैराज लोक में निवास करने वाले, शुद्धिबुद्धि योगाभ्यास परायण सनत्कुमारादि, सिद्धगण उस लोक को त्यागने के लिए एक साथ हो समुत्सुक होकर परस्पर इस प्रकार का वार्तालाप करते है, हे महाभाग्यशालियों ! अव हम लोग प्रणव का आश्रय प्राप्त कर ब्रह्म लोक मे निवास करेंगे, उससे हम सबों को विशेष कल्याण की प्राप्ति होगी |७५-७७१ इस प्रकार परस्पर सम्भाषण करने के उपरान्त वे योगधर्मा महात्मागण योगाभ्यास द्वारा आत्मा को परमात्मा ब्रह्म में सन्नियोजित कर शान्त दीप शिखा की भाँति पुनरावृत्ति विरहित ब्रह्म पद की प्राप्ति करते हैं, और उसी स्थान पर विलीन हो जाते हैं । उस परम सुखदायिनी कल्पनाओं से परिपूर्ण अनामय ब्रह्मलोक को प्राप्त कर ब्रह्मनन्द मे निमग्न होकर वे अमृतत्व की सम्प्राप्ति करते हैं । यह ब्रह्मलोक वैराज नामक लोको से छ गुना अधिक ऊपर विद्यमान है। उसको ख्याति ब्रह्म लोक नाम से हैं, वहाँ ब्रह्मा पुरोहित है |७८-८१ | वहाँ के सभी निवासी परम शुद्ध बुद्ध एवं तपोनिष्ठ होते हैं, प्रणव हो उनकी आत्मा होती है। ब्रह्मानन्द में निमग्न होकर वे अमृतत्व का । उनमें सुख दुःखादि दृन्हो का उदय नहीं होता, तीनो भावों का उनमें सर्वथा अभाव रहता है, वे सब के सब परम तेजस्वी एवं आधिपत्य को छोड़कर सभी बातों में ब्रह्मा के समान प्रभावशाली होते है | प्रभाव, विजय ऐश्वर्य, स्थिति, वैराग्य, ज्ञानादि में ब्रह्मा ही के समान होते हैं । वे परमशुद्ध, बुद्ध

  • इत मारभ्य 'भजन्त्यत' इत्यन्तग्रन्थो घ पुस्तके नास्ति ।

उपभोग करते