पृष्ठम्:रुद्राष्टाध्यायी (IA in.ernet.dli.2015.345690).pdf/१४

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ऽध्यायः १ ] भाष्यसंहिता | ' हे देवगणांके मध्य में गणरूप से पालक | आपको हम बुलाती है, मयोंके मध्य में प्रियों के पालक अथवा सबसे अधिक होने से आत्मा हो प्रियपात है कारण कि, आत्माके निमित्त सबको त्यागदेना होता है, इससे पति आपको हम बुलाती हैं, मुखानिधियोंके मध्यम वा विद्यार्थ्यादि पोषण करनेवालों के मध्यम खानधिके पालक आपको हम बुलाती है, हे प्रजापते व्यापक होवर सब जगत्में निवास करनेके कारण तुम मेरे पाळक हूजिये । (अगले मंत्रसे अश्वका स्पर्श कर परमेश्वरसे प्रार्थना है ) मैं गर्भके धारण करानेवाले रेत अर्थात् कर्मफल उत्पन्न करने की सामर्थ्य धारण करनेवाले श्रद्धानामक जलको सब प्रकारसे आकर्षण कर- तीहूँ, अर्थात् श्रद्धासे स्वीकार करके फलके उन्मुख करती, आप गर्भधारण कराते अर्थात श्रद्ध' नामक जळको आकर्षण कर उत्सर्ग अर्थात् फोन्मुख करतेहो | अथवा गर्भके समान सम ससारकी धारक प्रीतिके धारण करनेवाले वा अपनी शक्तिसे जगत्के अनादिकारण गर्मके धारण करनेवाले वा सम्पूर्ण मूर्तिमान पदार्थों की रचना करनेवाले आपको सब प्रकार से -सन्मुख करतीहूं, सब जगत्के तत्वों में गर्मरूप बी नको धारण करनेवाले आप सब प्रकार मानते वा सन्मुख होते हो ॥ १ ॥ मन्त्रः । गायत्री त्रि॒ष्टुन्जग॑त्यनुष्टुप्पङ्यासह ॥ बहु- त्य॒ष्णकुकुप्सूचीमशम्म्यन्तुत्त्वा ॥ २ ॥ ॐ गायत्रीत्यस्य प्रजापतिऋषिः । उष्णिक छन्दः । अश्वो देवता । अश्वशरीरे रेखाकरणे विनियोगः ॥ २ ॥ माध्यम हे अश्व ( गायत्री ) गायत्री (त्रिष्टुप् ) त्रिष्टुप् ( जगती ) जगती ( मनुष्टुप् ) अनुष्टुप् ( पंत्या सह ) पंक्तया सह ( बृहती ) बृहती ( उष्णिहा सह ) उष्णिहा सह (ककुप् ) ककुयू एतानि छन्दासि ( सूचीभिः ) एतामिः सूची- मिः (त्वा ) त्वाम् (शम्यन्तु ) संस्कुर्वन्तु “विशो वै सूच्यो राष्ट्रमश्वमेधो विशं चैवा- स्मिन् राष्ट्रे समीची दबाते" [ श० १३ | २ | १०२ ] स्मो पत ईश्वरो वा अश्वः [ १३ | ३ |८|८ ] [ यजु० २३ | ३३ ] ॥ २ ॥ भाषार्थ-हे अश्वरूप देव | गायत्री अर्थात् मानेवालेका रक्षक गायत्रीछन्द, तीनों तापका शेधक त्रिष्टुपूछन्द, जगत् में विस्तीर्ण जगती छन्द, संसारका दुःखरोधक अनुष्टुपू, पक्तिछन्दके । साथ वृत्ती, प्रभातप्रियकारी उणिकूछन्द, अच्छे पदार्थोंबाला कपूछन्द, सूचियद्वारा तुमको ९ शान्त करे | प्रजाका नाम पक्षान्तर में सूची राष्ट्र अश्वमेध है यही राज्यको शान्त रखती है ॥२॥ ब्रह्मस्नुतिपक्ष में - गायत्री, त्रिष्टुपू, जगती, अनुष्टुपू, पंक्ति, बृहती, उष्णिकू, ककुपूछन्द, इन सबके द्वारा सर्व दिशाओं में सुन्दर उक्तियों के द्वारा सब : कोई आपकी स्तुति प्रार्थन करते हैं ॥ २ ॥ 1 . }