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रुद्राथध्यायी - [अमो तस्य पालकाय भाषाय स्नानादिना पुण्यजनकत्वेन पालकत्वं माघस्य (अधिपतये ) अधिकारका वर्षान्तत्वात् ( प्रजापतये ) द्वादशमासाधिष्ठाचे मजापति• नामकाय देवाय ( स्वादा) हुमत | ( इयम् ) ( ते ) तब (राहू ) राज्यम् । यत्र यागाः क्रियन्ते तत्त्व राज्यम । किथ है त्वं ( मित्राय) मित्रस्य सख्युर्यजमानस्य (यन्ता ) नियम: ( असि ) या | पढ़ चतुर्थी मित्रायेति । तथा त्वम् ( यमनः ) यमयतीति यमन: अग्निशेमादिकमेनु सर्वोलियमन्मतः ( ऊर्जे) विशिष्टानरसाय (त्वा) त्वामभिपश्चामीति शेपः । तथा (घृयै) वर्षणाय (त्वा) त्यामनुभिपिञ्चामीति | तथा ( प्रजानामाधिपत्याय ) मजास्वामित्वापये त्वामभिषि यामि वसोरया “प्रजानामाधिपत्यायेत्पन्नं वा ऊर्जनं सृष्टिग्मेदमीणाति " इति ९ । ३ । ६ । १०-११: " | [ यजु० १८०२८] २८ ॥ मापार्य-चैत्रमासके निमित्त श्रेष्ठ होम हो, वैशाखके निमित्त श्रेष्ठ होम हो, ज्येष्ट के नि मित्त श्रेष्ठ होम हो, आपाटके निमित्त श्रेष्ठ होम हो, श्रावके निमित्त श्रेष्ठ होमो, माद्र पदके निमित्त श्रेष्ठ होम हो, आश्विन के निमित्त श्रेष्ठ होम हो, फार्तिको निमित्त श्रेष्ठ होम व्हो, मार्गशीर्षके निमित्त श्रेष्ठ होम हो, पौषके निमित्त श्रेष्ठ होम हो, मायके निमित्त श्रेष्ठ होम हो, फाल्गुनके निमित्त श्रेष्ठ होम हो, संवत्सरके निमित्त श्रेष्ठ होम हो, मुश्नपतिक निमित्त श्रेष्ठ होम हो, अधिपति श्रेष्ठ होम हो, द्वादश महीनांके लधिष्ठावान अनापति के निमित्त श्रेष्ठ होम हो, हे प्रजापते यह तुम्हारा राज्य है जयत् जहाँ या होता यह सब तुम्हारा ही राज्य है, अग्रिष्टोमादिकम सबके नियन्ता तुम सखाप इस यनमा- नके नियामक हो शिशेष्ट अन्नरसके निमित्त तुमको धारा सिंचित करतहूं "अग्रिमें अहुतिदानसे अच्छी व दोन मजा खामित निमित्त बहधारा हमको अभि- पैक करता हूं || २८ ॥ मन्त्रः । आयु॑र्ग्युज्ञेन कल्प्पताम्माणोषज्ञेन॑कल्प्प हायज्ञे नै कल्प्पता बुझेक रुपताम्याग्थ्यकेन कल्पताम्सनोवज्ञेन॑क रूप्पतामात्यमायुज्ञेवं कल्पतम्नायुज्ञेन॑ कम्प्पताउयोतिर्य॒ज्ञेनं कल्पता स्वर्ण्य ज्ञेन॑कल्प्पताम्पृष्ठंबुज्ञेनं कल्प्पतषज्ञोयु