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अध्यायः ८. ] माभ्यसहिता । (१२५) एक॑वि॒र्वंशतिश्चम॒ऽएक॑विशतिश्चमे त्र- यो॑विर्वशतिश्चमि॒त्रयो॑विर्ठशतश्च पञ्च॑ विशतिश्श्च मे॒पञ्च॑विशतिश्श्चमेसप्तर्वि शतिश्श्चमेसुप्तवि॑िशतिश्च मे॒नव॑विठेश- तिश्चमे॒ नव॑विर्वशातिश्श्चम॒ऽएकत्रिटेशच म॒ऽएक॑ त्रिशच मे॒त्रयो॑स्त्रिशचमे बुज्ञेन कल्प्पन्ताम् ॥ २४ ॥ ॐ एकाचेत्यस्य देवा ऋषयः । पूर्वार्द्धस्य संकृतिश्छन्दः शेषस्य 'वेराकृतिः | अग्निर्देवता | वि० पू० ॥ २४ ॥ भाष्यम् - मधुम्मस्तोमोमार्था मन्त्राः, यथायुजस्तोमान् जुहोतीति ९ | ३ | ३ | २ श्रुतेः । एकामादाय द्वितीयां विहाय तृतीयामादाय चतुर्थी विहाय परित्यक्तसमसंख्या के. नात्तविषमसंख्याकन मन्त्रेणायुग्मान् स्तोमान् जुहुयादित्यर्थः । श्रादरातिशयद्योतनाथ सर्वत्र पुनरुक्तिः | व्ययुग्मस्तोमहामैः सर्वकामावाप्तिः । तथा च श्रुतिः - "एतद्वै दे॒वाः सर्वान्कामानाता युग्मिः स्तोमैः स्वर्गे लोकमायंस्तथैवैत द्यजमानः सर्वान्कामानाप्ता युग्मि: स्तोमैः स्वर्गे लोकमति” इत्यादि । एका च मेति सुगमम् | [ यजु० १८/२४]॥२४॥ भापार्थ- इस यज्ञके फलसे देवतालोग मुझको एक प्रदान करें, इस यज्ञके फलसे देवताळा मुझको तीन प्रदान करें, इस यज्ञके फलसे देवतालोग मुझको पाँच प्रदान करें, इस यज्ञके फलसे देवतालोग मुझको सात प्रदान करें, इस यज्ञके फतासे देवतालोग मुझको नौ प्रदान करें, इस यज्ञके फलसे देवतालोग मुझको ग्यारह प्रदान करे, इस यज्ञके फलसे देवताको मुझको तेरह प्रदान करें, इस यज्ञके फलसे देवतालोग मुझको पदह प्रदान करें, इस यज्ञके फलसे देवतालोग मुझको सत्रह प्रदान करें, इस यज्ञके फलसे देवतालोग मुझको धन्नीस प्रदान करें, इस यज्ञके फळसे देवतालोग मुझको इक्कीस प्रदान करें, इस यजके फलले देवतालोग मुझको तेईस प्रदान करें, इस यज्ञके फलसे देवतालोग मुझको पच्चीस प्रदान करें, इस यज्ञ के फल देवता लोग मुझको सत्ताईस प्रदान करे, इस यज्ञके फलसे देवतालोग मुझको उत्तीस करें, इस यज्ञके फलसे देवतालोग मुझको एकतीस प्रदान करें, इस यज्ञके फल से देवतालोग मुझको तैतीस प्रदान करे ॥ २४ ॥ विशेष- इस मत्रमें गणितविद्या मी कथन की है यन धातुका संगतिकरण अर्थ होने किसी संख्याका जोडदेना और दान अर्थसे व्यय करदेना है कारण गुणन भाग वर्ग घन मूळ K