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पृष्ठम्:रावणार्जुनीयम्.djvu/८५

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१६२ . | ४८ इनण्यनपलेये ॥ १६४ ॥ गाथिविदथिकेशिगणिप- णिनश्च ॥ १६५ ॥ संयोगादिश्च ॥ १६६ ॥ अनन् ॥१६७॥ | ये चाभावकर्मणोः ॥१६८॥ आत्माध्वानौ खे ॥ १६९ ॥ न मपूर्वोऽपत्येऽवर्मणः ॥ १७० ॥ आातो धातोः ॥ १४० ॥ ति विशतेडिति ॥ १४२ ॥ •| | क्षमनपत्ये ।। १७३ ॥ दाण्डिनायनहास्तिनायनाधर्वणि टेः ॥ १४३ ॥ नस्तद्धिते ॥ १४४ ॥ आहष्टखोरेव ॥ १४५॥ | | कजैह्माशिनेयवाशिनायनिभ्रौणहत्यधैवत्यसारवैक्ष्वा ओोर्गुणः ॥ १४६ ॥ ढे लोपोऽकदाः ॥ १४७ ॥ कमैत्रेयहिरण्मयानि ॥ १७४ ।। [ईंख्यर्जुनरावणीये महाकाव्ये अङ्ग(षष्ठाध्यायस्य चतुर्थे)पादे विंशः सर्गः ।] ॥ ४६ ॥ [(सप्तमाध्यायस्य प्रथमपादे) एकविंश सर्गः ।] यस्येति च ॥१४८॥ सूर्यतिष्यागस्त्यमत्स्यानां य , उप | | यवोरनाकौ ॥ १ ॥ आायनेयीनीयियः फढरखछघां धायाः ॥ १४९ ॥ हलस्तहितस्य ॥ १९५० ॥ आपल्यस्य च | | प्रत्ययादीनाम् ॥ २॥ झोऽन्तः ॥३॥ अदभ्यस्तात् ॥ ४ ॥ तद्धितेऽनाति ।। १६१ ॥ क्यच्व्योश्च ।। १५२ ।। आत्मनेपदेष्वनतः ॥ ५ ॥ शीडो रुट् ॥ ६ ॥ वेत्तेर्वि भाषा ॥ ७ ४७ ॥ बिल्वकादिभ्यश्छस्य लुक् ॥ १५३ ॥ तुरिष्ठेमेयःसु ॥ १ ॥ १५४ ॥ टेः ॥ १५ ॥ स्थूलदूरयुवाहखक्षिप्रक्षुद्राणां अतो भिमस ऐसा ॥ ९ ॥ नेदमदसोरकोः ॥ ११ ॥ टा यणादि परं पूर्वस्य च गुण: ॥ १६६ ॥ प्रियस्थिरस्फिरो| ङसिङसामिनात्स्याः ॥ १२ ॥ डेयैः ॥ १३ ॥ सर्वनाम्र रुथहुलगुरुवृद्धतृप्रदीर्घवृन्दारकाणां प्रस्थस्फवर्थगिर्वः | मै ॥ १४ ॥ ङसिङयोः समात्स्मिनौ ॥ १५ ॥ पूर्वादिभ्यो पित्रव्द्राघिवृन्दाः ॥ ॥ बहोलपो भू च बहोः | १५७ नवभ्यो वा ॥ १६ ॥ जसः इशी ॥१७॥ औौङ आपः ॥१८॥ ॥१५८॥ इष्टस्य यिट्र च ॥१५९॥ ज्यादादीयसः ॥१६०॥ नपुंसकाच ॥ १९ ॥ र ऋतो हलादेर्लघोः । १६१ ॥ प्रकृत्यैकाच ॥ १६३ ॥ |:[७ अ० १ पा०२१ स०] रावणार्जुनीयम् । ॥ ४९ ॥ ब्राह्मोऽजातौ ॥ १७१॥ कार्मस्ताच्छील्ये ॥१७२॥ औः जइशसोः शि ॥ २० ॥ अष्टाभ्य औौशा ॥ २१ ॥ षड्भ्यो लुक् ॥ २२ ॥ खमोर्नपुंसकात् ॥ २३ । अतोऽम् ॥ २४ ॥ अद्डुतरादिभ्यः पञ्चभ्यः ॥ २५ ॥ युष्मद्महद्यां ङसोऽश ॥ २७॥ डेप्रथमयोरम् ॥ २८ ॥ शसो न ॥ २९ ॥ भ्यसो भयम् ॥ ३० ॥ पञ्चम्या अत् । ३१ । एकवचनस्य च ॥ ३२ ॥ साम अाकम् ॥ ३३ ॥