पृष्ठम्:महासिद्धान्तः.djvu/103

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पराशरमताध्यायः । रघ्रगणो द्विगुणशेषाहर्गणोऽधः स्थाप्यः॥प्रथमस्थः कगधैः१३९ मत्तः । अधःस्थः खगननकाषैः २३००१६ भक्तः । फलयोरंशाद्ययोर्यत्या द्युगणेऽहगैणे हीने सति भागाद्यकीं भवेत् । अत्र वर्षेौघातू कलिगतवर्षगणात् तस्मात्भैः ४ अभिहतात् सभलततै ७४३६६ आप्तात् या विलिप्तिका विकलास्ताभिहींन सन् भागादरविभेवेदिति । अत्रोपपत्तिः । पराशरोक्तभगणकुदेनवशेन хto o o o o o o X R x R L RR అతి x RX R ه° ዓኳጻvs v»% ፃ (sVዃvs ه ه ه به واداوا ۹۹ و قابا ۹ रावगतिः = _૧૧૧૧૨૦૦૦ " - -- ༣༠ २२७१७५७ × २° kov9° V9 × R? و با وا و هوا و ۹ها و ०, २२७१७५७× २' ܒܫ ܚܝܶ----ܚܝܢܶܚ------------ ܡܢܘ `[؟ ܫܒܩ ३१५५८३५१४ ।। J O R - — sovo', th R۹ -- - -- وٹاوا ؟ وRRv 9 ܘܟ݂ sm= mo - - + th १३९ ༨༠ ང༠༠༥ R. १३ २२७ १७५७ -°२° - २ × १९०७०९ ( ܘܢ १३९ १३९ x ३१५५८३५ १४ - -( * * x o ovoso E ། -- -- • ܦܟ - ܫܗܝ ܕܝ * % \9 \9ረ ፃ ዓ )

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