तथा हि-
बहूनामल्पसाराणां समवायो[१] दुरत्ययः । |
और-अल्प वल वाले बहुतों का संगठित होना कठिनता से वश में आ सकने वाला बन जाता है । रस्सी तिनकों से बनायी जाती है किंतु उससे दतैल हाथी बाँध लिये जाते हैं।
ततो विलासवती नाम वेश्या तं प्राह--
तदेवास्य परं मित्रं यत्र सङ्क्रामति द्वयम् । |
दयित, मयि विद्यमानायां किं ते राज्ञा, किं वा राजदत्तेन वित्तेन कार्यम् । सुखेन निःशङ्कं तिष्ठ मद्गृहान्तः कुहरे' इति । ततः कालि- दासस्तत्रैव वसन्कतिपयदिनानि गमयामास ।
तब विलासवती नाम की वेश्या ने उससे कहा-
'जैसे दर्पण में प्रतिबिम्ब संक्रमित हो जाता है, वैसे ही सुख और दुःख- दोनों जिसमें संक्रमित हो जायें, वही सबसे बड़ा मित्र होता है । ( मित्र सुख- दुःख-दोनों का समान अनुभव करने वाला ही होता है । )
स्वामी, मेरे रहते क्या काम तुम्हें राजा से और क्या लेना तुम्हें राजा के धन से ? मेरे घर के गुप्त आगार में सुख पूर्वक शंका त्याग कर रहो।'
सो वहीं रहते कालिदास ने कुछ दिन विता दिये।
ततः कालिदासे गृहानिर्गते राजानं लीलादेवी प्राह–'देव, कालि- दासकविना साकं नितान्तं निविडतमा मैत्री। तदिदानीमनुचितं कस्मात्कृतं यस्य देशेऽप्यवस्थानं निषिद्धम् ।
इक्षोरग्रात्क्रमशः पर्वणि पर्वणि यथा रसविशेषः । |
५ भोज०
- ↑ अत्येतुमशक्यः ।