प्रस्तावना
संस्कृत साहित्य की इतिकथा में बल्लाल नामक दो विद्वानों का उल्लेख होता है- एक तो नवीं शती का उत्तरार्द्ध जिनका कार्यकाल माना जाता है, वे 'बल्लाल शतक' नामक, अन्योक्ति काव्य के रचयिता और दूसरे 'भोज प्रबंध' के विधाता । 'भोजप्रबंध'कार का पूरा नाम कदाचित् बल्लाल सेन था और ये कदाचित् सोलहवीं शती में हुए थे। ।
भोज भी एकाधिक व्यक्ति का नाम था । एक विदर्भराज भोज थे, इनका समय ग्यारहीं शती ( १००५-१०५४ ) माना जाता है । ये 'रामायणचम्पू' के रचयिता माने जाते हैं । दूसरे भोज भी ग्यारहवीं शती के राजा हैं, घारानगरी जिनकी राजधानी थी। कहा जाता है कि ये बड़े ही काव्यरसिक और विद्वानों का संमान करनेवाले राजा थे। संभवतः ये भोज ही अलंकारशास्त्री थे और 'सरस्वतीकण्ठाभरण', 'शृङ्गारप्रकाश' और 'समराङ्गणसूत्रधार' इन्हीं की कृतियाँ हैं । ऐसा भी माना जाता है कि ये भोज धारा के राजा मुंजराज के भतीजे थे, जो स्वयम् बड़ा कला प्रेमी और रसिक था। मुंज को 'पृथ्वी वल्लभ' कहा जाता था । तैलप राजा की भगिनी मृणालवती और मुंज की रोमांचक प्रेमगाथा की चर्चा अपभ्रंश-गाथाओं में प्राप्त होती है ।
'भोज-प्रबंध' कदाचित् इन्हीं श्रीभोज को आधार बनाकर बल्लालसेन द्वारा रचित एक कथोपकथा संकलन है । ऐसे संकलन की प्रवृत्ति जैन साहित्य में प्राप्त, मेरुतुङ्ग-रचित 'प्रवध चिंतामणि' तथा राजशेखर सूरि कृत 'प्रबन्ध कोश' के रूप में है । उसी का परिणाम भोजप्रबन्ध' है, मित्रवर डॉ० भोला शङ्कर व्यास का यह विचार समीचीन ही प्रतीत होता है ।
यह सब है, फिर भी ‘भोज प्रबन्ध' को ऐतिहासिक दृष्टि से अधिक महत्त्व देना कदाचित् बहुत ठीक नहीं है । इसके पात्र अनेक कवि एक समय में जिनमे काव्यविलासी नहीं थे; उनका कार्यकाल भिन्न और अनेक है । इस स्थिति में 'भोज प्रबंध' को एक मनोरंजक काव्य-सूक्ति-संग्रह मानना ही अधिक