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पुटमेतत् सुपुष्टितम्
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भोजप्रवन्धः


करेण धृत्वानीतः पण्डितः।

 इसके उपरांत सूर्य के अस्तमित होने पर ऊँचे महल से उतरते क्रुद्ध यमराज की भांति वत्सराज को देखकर डरे हुए सभी सभासद अनेक प्रकार

के बहाने बनाकर अपने-अपने घरों को चले गये। फिर अपने सेवकों को अपने

आवास की रक्षा के लिए भेजकर, रथ को भुवनेश्ववरी के मंदिर की ओर करके कुमार भोज के उपाध्याय को बुलाने के निमित्त एक सेवक को वत्सराज ने भेजा । वह पंडित से वोला-'तात, आपको वत्सराज बुलाते हैं।' यह सुनकर वज्र से मारे हुए जैसे, भूत से ग्रस्त जैसे, ग्रहगृहीत जैसे उस पंडित को सेवक हाथ पकड़ कर ले आया।

 तं च बुद्धिमान् वत्सराजः सप्रणाममित्याह--'पण्डित, तात, उपविश । राजकुमारं जयन्तमध्ययनशालाया आनय' इति । आयान्तं जयन्तं कुमारं किमप्यधीतं पृष्ट्वानपीत् । पुनः प्राह पण्डितम्-'विप्र, भोजकुमारमानय' इति । ततो विदितवृत्तान्तो भोजः कुपितो ज्वलन्निव शोणितेक्षणः समेत्याह--'आः पाप, राज्ञो मुख्यकुमारमेकाकिनं मां राजभवनाद् बहिरानेतुं तव का नाम शक्तिः' इति वामचरणपादुकामादाय भोजेन तालुदेशे हतो वत्सराजः । ततो वत्सराजः प्राह-'भोज, वयं, राजादेशकारिणः ।' इति बालं रथे निवेश्य खड्गमपकोशं कृत्या जगामाशु महामायाभवनम् ।

 बुद्धिमान् वत्सराज प्रणाम करके उससे बोला-'पंडितजी महाराज, विराजिए । राजकुमार जयंत को पाठशाला से ले आइए।' उसने आये कुमार जयंत से कुछ पढ़ा-लिखा पूछ कर उसे वापस भेज दिया। फिर पंडित से कहा-'हे ब्राह्मण, भोजकुमार को लाओ।' तत्पश्चात् समाचार जान कर क्रोध से जलता हुआ, लाल-लाल आंख किये भोज आकर वोला-'अरे पापी, मुझ राज के मुख्य कुमार को अकेले राजभवन से वाहर ले जाने की तेरी क्या शक्ति है ?' ऐसा कह बायें पैर से खड़ाऊं निकाल कर भोज ने वत्सराज के तालुभाग पर प्रहार किया । तब वत्सराज ने कहा-- भोज ! हम तो राजाज्ञा के पालक हैं।' ऐसा कह वालक ( भोज ) को रथ में बैठा कर तलवार म्यान से बाहर निकाले शीघ्रतापूर्वक महामाया के मंदिर की ओर चल पड़ा।