॥ च तन्मुखश्रिया भोजं मत्वा तत्पिपासां च ज्ञात्वा तन्मुखावलोकनशाच्छन्दोरूपेणाह- |
हिमकुन्दशशिप्रभशङ्खनिभं परिपक्वकपित्थसुगन्धरसम् । |
उसके मुख की कांति से उसने उसे भोज मानकर और उसकी प्यास को जानकर उसके मुख को देखने के लिए छंद रूप में कहा-
बर्फ कुंद, चंदा और शंख के समान श्वेत, |
राजा तच्च तक्रं पीत्वा तुष्टस्तां प्राह--'सुभ्रू :; किं तवाभीष्टम्' इति । च किचिदाविष्कृतयौवना मदपरवशमोहाकुलनयना प्राह-'देव, कन्यामेवावेहि ।'
वह मीठा पीकर संतुष्ट हो राजा ने उससे कहा--'हे सुंदर भ्रकुटी , तुम्हारी क्या कामना है ?' जिसका यौवन कुछ-कुछ प्रकट हो धा, ऐसी वह मद के परवश हो चंचल नेत्रों से मोह प्रकट करती हुई -'महाराज, मुझे कुमारी कन्या ही समझें।
सा पुनराह-
'इन्, कैरविणीव कोकपटलीवाम्भोजिनीवल्लभं . |
यथा कुमुदिनी शशि को चाहे, सूरज.को मंडल चकवों का, |
राजासत्कृतः माह-सुकुमारि, त्वां लीलादेव्या अनुमत्यास्वीकुर्मः।' इति धारानगरं नीत्वा तां तथैव स्वीकृतवान् ।