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भोजप्रवन्धः

 चंद्रमंडल ( मुख') खिन्न हो गया; माला से ग्रथित अंधकार बिखर गया (पुष्पमाल से युक्त केशराशि बिखर गयी ); पहिले खिलते केतक-पुष्प की कोर की लीला करने वाली सुंदर मुसकान शांत हो गयी, कुंडलों का नृत्य समाप्त हो गया, कुवलयों का जोड़ा ( दोनों नेत्र ) मुंद गया और प्रवालों ( ओष्ठों) से सी-सी करना बंद हो गया--तत्पश्चात् न जाने क्या हुआ ?

  राजा कालिदासं प्राह-सुकवे, भवभूतिना सह साम्यं तव न वक्तव्यम् ।' भवभूतिराह--'देव, किमिति वारयसि ।' राजा--'सर्व- प्रकारेण कविरसि । ततो बाणः प्राह--'राजन्, भवभूतिः कविश्चेत् कालिदासः किं वक्तव्यः राजा--'बाणकवे, कालिदासः कविर्न । किन्तु पार्वत्याः कश्चिदवनौ पुरुषावतार एव ।' ततो भवभूतिराह--'देव, किमत्र प्राशस्त्यं भाति ।' राजा प्राह--'भवभूते, किमु वक्तव्यं प्राशस्त्यं कालि- दासश्लोके । यतः केतकशिखालीलायितं सुस्मितम्' इति पठितम् ।' ततो भवभूतिराह--'देव, पक्षपातेन वदसि' इति । ततः कालिदासः प्राह-'देव अपख्यातिर्मा भूत् । भुवनेश्वरीदेवतालयं गत्वा तत्सन्निधौ तां पुरस्कृत्य घटे संशोधनीय त्वया ।'

 राजा ने कालिदास से कहा-'हे सुकवि, भवभूति के साथ तुम्हारी समता अवचनीय है।' भवभूति ने कहा-'महराज, क्यों निवारण करते हैं ?' राजा-'तुम सब प्रकार से कवि हो।' तो बाण ने कहा-'राजन्, यदि भवभूति कवि है, तो कालिदास को क्या कहा जाय ?' राजा-'कवि -बाण, कालिदास कवि नहीं है, अपितु धरती पर पार्वती का एक पुरुषावतार ही है ।' तो भवभूति ने कहा-'महाराज, इसमें प्रशंसनीय क्या प्रतीत होता है ?' राजा ने कहा--'भवभूति, कालिदास के श्लोक की प्रशंसनीयता के विषय में कहना क्या ? क्या कहा है-- केतक-पुष्प की कोर की लीला करने वाली सुंदर मुसकान' ! तो भवभूति ने कहा---'महाराज, पक्षपात पूर्ण कहते हैं ?' तो कालिदास ने कहा--'महाराज, अपकीर्ति न हो। भुवनेश्वरी देवी के मंदिर में जाकर उसके निकट कविता को रखकर आप घट द्वारा परीक्षण करें।

 ततो भोजः सर्वकविवृन्दपरिवृतः सन्भुवनेश्वरीदेवालयं प्राप्य तत्र. तत्सन्निधौ भवभूतिहस्ते घटं दत्त्वा श्लोकद्वयं च तुल्यपत्रद्वये लिखित्वा