पृष्ठम्:भरतकोशः-३.pdf/७

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दाक्षिण्यं शौर्यमुत्साहो नीचार्थेषु जुगुप्सतः गुणैस्साथै यसश्शोभेति सा स्मृता उत्थ ( आ ) (अद) शौचम्- व्यभिचारिभाव उत्तमानां श्रुतिशास्त्रविवेकैरुत्पद्यते ! तश्यशमसत्यादिभिरमि - ीयते । यथा-दान्तोऽहमित्यादिजनकवाक्यम् । शौरिविलासिता-मेलरागः (मायामालयगौलमेलजन्य:) (आ) नेि ध नि स रेि ग म प म ए ध नि (अव) ध प म ग रि स नि ध नि स स रि भ प म ध नि स स ध नि प म िम ग स शैर्यचन्द्रिका मेलागः (सूर्यकान्तमेलजन्य ( आ ) स ग रिं ग म प ध प स (अव) स नि ध म ग रि ग स शैौर्यवर्धिनी-मेलराः हेमवतीर्मलजन्य:) ( आ) स रि म प ध नि स (अव) स नि ध प म ग रि स श्यामः- मुखरागः इयांमो दूर्वादलनिमः वीभत्से च भयानक्रे । (अ) ( अध) (अव ) इयामेो नीलघनछविः । भयानके च बीभत्से रागश्यामेो मुखे भवेन् । सोमेश्र स ० रेि ० ग ० ० ५ १ ध ० ० स स नि ० ध ० प म ० ग ० रेि ० स मेलरागः (मेचकक्ष्याणीमलजन्यः) स नि प ध प म ग रि स सागरः म ६७७ (आ ) (अव) स नि ध नि द रेि ग म प ४ ए म ग रे स नि ६ नि श्रि इगामळङ्गी मेलक (: स रि ग ० ० ० म प ध ० नि ० स स नि ध प म ग १ि स द्वौ पश्मात्रिकौ द्वौ चतुर्मात्रिकैः यः। वैवतस्य नृतीया श्रुति श्यामान्दालिका -मेलग:(हारकाम्भोजीमेलजन्य:) (अ) स रेि म ध नि प नि स. (अव) स नि ए ध प म ग रि स म ग रेि नि ध श्येनो भवेत्स्वरद्वन्द्वं कलासु विकलात्मकः। आदौ स पञ्चमौ नीत्या पूर्णपूर्ववियोगतः। तथाऽन्य तु कल स्याता एव संवादियुग्मकाः ।। कलास्थुः प स रेि ध इति । वर्णालङ्कारः (सञ्चारी) सप ग्धि गनि मस २२ यद्धः

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