पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः (भागः ४).djvu/७५

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ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते यथा कलाशेषं षष्टिगुणं दृढ़कुदिनभक्त लब्धं गृहविकलाः शेषं च विकलाशेष मिति । हरलब्ध्योघतः क्षेपयुतो भाज्यराशिसमः ६०x कशे=गृविx दृकु+विशे कशे-गुविxदृदृकु +विशे अतो दृढ़कुदिनमानं येन गुण विकलाशेषयुतं षष्टि भक्त निरगू भवति । स गुणको गृहविकलाः । फल च कलाशेषमिति । एवं स्वस्वशेषगुरच्छेदाभ्यां तत्तच्छेषमाने भवत इति । भगणादिशेषादहर्गणानयन विधिरार्यभटीये महासिद्धान्ते भगणाद्यगूाणि स्युः क्षेपा ऋण संज्ञकाः क्वहाश्छेदः । भगणादीनां भाज्याभगणायंखा' गना तना तेना ।। विकलाशेषोत्पन्नं फलं विलिप्ता गुणः कलाशेषम् । लिप्तागूोत्पन्न फलं लिप्तागुणकोंऽशशेषं स्यात् । लवशेषजफलमंशा गुणको राश्यगूकं भवति । राश्यगूोत्पन्नफलं गृहाणि गुणको भवेद् भगणशेषम् । मण्डलशेषप्रभवं फलं च चक्राण्यहर्गणो गुणकः ।।' इति । स्थिर कुट्टक से ग्रहानयन और विकलादिशेष से अहर्गणानयन ब्रह्मगुप्त और भास्कराचार्यने किया है। विकलादिशेष से अहर्गणानयन को ही प्राचीनाचार्य प्रधानरूप से कुट्टक विधि कहते हैं। भास्कराचार्य ने लीलावती में ‘अस्य गणितस्य ग्रहगणिते महानुपयोग स्तदर्थं किञ्चिदुच्यते’ यह कहकर उसकी विधि “कल्प्याथ शुद्धिर्विकलावशेष षष्टिश्च भाज्यः कुदिनानि हारः” तज्जं फलं स्युर्विकला गुणारतु लिप्ताग्रमस्माच्च कलालवाग्रम् । एवं तदूध्र्व च तथा इत्यादि से भास्कराचार्य ने विधि कही है। ग्रह के विकलाशेष से ग्रहानयन अहर्ग रणानयन करते हैं । जैसे-साठ भाज्य । कुदिन हर, विकलावशेष शुद्धि ये कल्पना कर गुणक और लब्धि साधन करना चाहिये, यहाँ लब्धि विकला होती है। और गुणक कलाशेप । एवं कलाशेष शुद्धि । साठ भाज्य । कुदिन हर इससे लब्धि कला होती है और गुणक भाग (अंश) शेष होता है । भागशेष शुद्धि, तीस भाज्य, कुदिनहर इससे लब्धि गतराशि प्रमाण होता है । गुणक भगणशेष होता है। कल्पभगण भाज्य । कुदिन हर, भगणशेष शुद्धि इससे लब्धि गतभगण होता है। गुणक अहर्गण होता है । अहर्गण ज्ञान से ग्रहानयन सुगम ही है। यद्यपि श्रीपति ने कुट्टकाध्याय में इस विषय को (विकलादिशेष से ग्रहानयन और अहर्गणा नयन) नहीं कहा है । तथापि प्रश्नाध्याय में एतद्विषयक प्रश्न लिखे हैं जैसे ‘यो राशिशेषादथ भागशेषा'दित्यादि संस्कृतोपपत्ति में लिखित श्लोक से स्पष्ट किया है । अर्थात् भगणादि ग्रहानयन में जो राशि शेष है उससे, भगणादिग्रहानयन में ही जो अंश शेष है उससे भगणादि ग्रहानयन में कलाशेष से या विकलाशेष से ग्रह को और अहर्गण को जो गणक जानते हैं वे कुट्टकज्ञ हैं । (१) यंखा-१२ । गना= ३० । तना=६० । तेना= ६० द्वितीयार्यभटकृते महा सिद्धान्ते एवमेव केरलमतानुसारी सवत्रैव संख्यापाठोऽस्तीति ।