पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः (भागः ४).djvu/४९२

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ध्यानग्रहोपदेशाध्यायः १५८१ केन्द्रज्या =२७४०५३४०lt७७l००me६००॥११०००:११८l००॥ ११६।२०।। केन्द्रकोटिज्या= ११६२०।१०७l००४२००lu७१॥२०॥४७l२०२१००॥ ७००।। अन्त्यफलज्या =२१००|।२१००।।२१००|२१००२१००२१००॥ २१००॥ स्पको = १३७।२०।१२८l००।।११३।७०।।२२०।६८२०।।४२।००१४००॥ शक ==१४०६/।८३२८।८२०४७९६२७७७oul७५१५७२१०॥ =४-१५॥८१२११८२१५-१३॥१७ ८३।१७८।।२०८३॥ = १६७३८७५६२।७२०ll८४८६४२॥६-६२॥ &xशीफ =१७७३।।३४ ८३५०५८।।६४८०।।७६३२८४‘७८।।८६-२८॥ केन्द्रज्या =११४।४०।।१०४I००८७००।।६५।४०।।४१।००।।१४।००ll केन्द्रकोटिज्या=३४I२०६०l००८२००१००००।११३।७०।११८।४०। अन्त्यफलज्या =२१००२१०० ।।२१००२१००l२१००२१००॥ स्पको = १३।२०।३६००६१।००७t•p&२००lle७४०॥ शीक ==६९०७६६६४॥६३७५॥६१६४॥६०४४॥५६२०॥ शीफज्या =२०६५॥।१६०६७।१७१८।।१३४२।।८५३।२८ शीफ &&२६°३७८१८६°३५।४०७ll१-४२॥ &xशीफ == ८६-२८८४°३३।।७३-६२५७१५॥३६६३।।१२७८॥ आचार्येषिण्डाः= १८३६l५०६६।७८।८६९०। मत्साधिताः =१८I३५।५१।६५।७६।८५८६। आचार्यपिण्डाः =८।८४I७४५८।३६।१६०।। मत्साधिताः = ८६८४I७४५७।३७।१३०॥ । अब गुरु के पिण्ड को कहते हैं । हि. भा.-गुरु के क्रम से चतुर्दश (१४) पिण्ड=१८३६५०॥६६॥७८८६॥४०॥ ८८।[४७४१५८।३६१६०यहां सबसे बड़ा पिण्ड= &०” १=१०°= शीघ्रफलपरम