१५७२ ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते 4 ।। उचनीच और शीघ्रकर्ण की विलक्षणता के कारण ६ राशि के मध्य में केन्द्र होने पर तृतीयांशयुक्त १३ भाग की वृद्धि से भौमादि ग्रहों को चल केन्द्र मानक, उस पर से शीव्रफल लाकर उसके भाग को 8 से गुणकर जो हो उसको पिण्डाः पठित किया है। वे ६ राशि के भीतर १३+३ पिण्डार्क होते हैं । तेरह और चौदह पिण्ड के मध्य में केन्द्रन्तर = डें इसका आघ ३ी यह होता है इसका विचार करें । इष्टकेन्द्र भाग में कितना पिण्डार्क बीतगया इसकी जानकारी के लिये अनुपात करते हैं जैसे - यदि (३) केन्द्र भाग में १ पिण्ड पाते हैं तो इष्टकेन्द्रभाग में क्या इस अनुपात से इष्ट केन्द्रांश सम्वन्धी गतपिण्ड होगा। शेष सम्बन्धी फलानयन प्रक्रिया की युक्ति आगे कहेंगे। इदानीं शेषसम्बन्धिपिण्डावयवानयनमाह । पिण्डान्तरेण गुणिते शेषे खाब्ध्युद्धृते क्रमाद्दयेयम् । उत्तमविधौ विशोध्यं गतपिण्डे शीघ्रफलमेतत् ।। ४३ ॥ सु. भा.-शेषे पिण्डान्तरेण गतैष्यपिण्डयोरन्तरेण गुणिते खाब्ध्यु ४० द्ध ते फलं क्रमादुपचयात् गतपिण्डत एष्यषिण्डेऽधिके गतपिण्डे देयम् । उरुक्रमविधावर्थाद् गतपिण्डत एष्यपिण्डेऽल्पे फलं गतण्डेि विशोध्यं तदेतत् संस्कृत शीघ्रफलं शीघ्र फलसंबन्धि पिण्डमानं भवेत् । अत्रोपपत्तिः । यदि चत्वारिंशत् समेन त्रिगुणशेषेण गतैष्यपिण्डयोरन्तरं लभ्यते तदाऽभीष्ट त्रिगुण शेषेण किमित्यनुपातेन स्फुटा धनणपपत्तिश्वातिसुगमा ।४३। अब शेष सम्वन्धी पिण्डके अवयव को लाने का नियम कहते हैं । हि. मा-- शेषको गतैष्यपंडान्तर से गुण हैं, खाडिंध (४०) से भाग दें, फल को ग्रहण करें। यदि गतपिण्ड से एष्यपिण्ड अधिक हो तो फल को गतपिण्ड में घन करने पर शीघ्र फल सम्बन्धी पिण्डमान होता है । यदि गतपिण्ड से एष्युपिण्ड अल्प हो तो पूवंसाधित फल को गतपिण्ड में घटा दें तो शीघ्र फल सम्बन्धी पिण्डमान होता है । उपपत्ति । यदि चत्वारिंशत् (४०) के वरावर त्रिगुण शेष में गतैष्यपिण्ड का अन्तर प्राप्त होता है तो इष्ट त्रिगुण शेष में क्या इस अनुपात से लाभ हुमा त सम्बन्धी पिण्डमान, यह धन और ऋण की वासना स्पष्ट ही है।
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