१५३४ ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते ३९ में समुत्पद्यते) इदं त्रिंशद्ध तं जातमेकस्मिन् चान्द्रदिने केन्द्र क्षेपकमानम
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२४६० ३० - २ ३०+२५१ १+. १+. घटी-१ न+ ४ घटी। अत ३०४२५१ ३०२५१ २५१ उपपद्यते यथोक्तम् । भद्वितयेन भद्वतयमानेन १२० घटिकामितेन हृते घटीचतुष्कमिते । यत्फलं घटयात्मकं तदपि क्षिपेदित्येके ‘भद्वितयफलं घटीचतुष्कमिते’ इति पाठानु सारेण व्याख्यां कुर्वन्ति । अनेन '२५१' स्थाने १२० इयं स्थूला सङ्ख्योत्पद्यतेऽत एव मया पाठान्तरमुपनिबद्धम् ।e हि. भा’ –हर चान्द्रदिन के तिथि ध्रुवा में एक दिन युक्त करें और चार पल कम एक नाड़ी घटा दें । चन्द्रकेन्द्र में, प्रति चान्द्र दिन में से एक नक्षत्र और ४ धटी को २५१ से भाग देने पर जो फल मिले वह युक्त करना चाहिये। उपपत्ति । तीस तिथ्यात्मक चान्द्रमास में सावदिन=२८ । ३१ । ५० इसको ३० से भाग देने २६ । ३१ । से एक चान्द्र दिन में–तिबिथुवा क्षेपमान= ५० ० । ५४ । ४ = = =१ दि–५६ प=१ दि--(१ घ–४ प) । . इस तरह एक चान्द्रमास में चन्द्रकन्द्र नक्षत्रात्मक - ३० +३, - । ६ श्लोक से - अगणात्मक केन्द्र को २८ से गुणाकर नक्षत्रमक यदि करते हैं तब (३०++) यह उपपन्न होता है । इसको तीस से भाग देने पर एक चान्द्र दिन में केन्द्र क्षेपक मान -4ी -- २X ६० = १ + ३०४२५१ ३० ४ २५१ = १ न + ४- घटी। इससे ४ श्लोक उपपन्न होता है। २५१ अद्वितीयेन अर्थात् १२० घटी के मान से हृत चार घटी का जो फलघटघात्मक हो यह भी ओोड़ दें यह किसी का मत है । दो नक्षत्र का फल चार घटी में जोड़ दें यह पाठ के अनुसार व्याख्या करते हैं, इससे २५१ की जगह १२० यह स्थूल संख्या उपपन्न होती है । इसलिये मैंने पाठान्तर कर दिया है।