शंकृछायादिज्ञानाध्यायः १३१३ उपपत्तिः । प, पं प्रथम द्वितीय जल स्थाने, य, य | प्रथम द्वितीय नरस्थाने, गम=गम=गृहो- (४ *~* च्छुितिः । प प=जलान्तरम् = जलापसुतिः य य=र र=नरान्तरम् । अनयोरन्तरम् = यं पर्प पंय -- पयसजातीययोः - - = , म पप, म र र त्रिभुजयोः क्रमेण मग, म ख बहिर्लम्ब स्तदा मुख= ॥ ॥ । ॥ मग प प म ख--मग _ खग र र–प प उभयत्रैक शोधनेन म ग प प ५ ५ - य य-–प प दृष्टय-च्छिति X जलान्तर
- - अतः मग =मग= नरजलान्तरयोरन्तरं
प प =गृहोचितिः । अथ पयq . प गमप, परय सजात्य त्रिभुजयोः साजात्यादनुपातः भ~~=गप=प्रथमजलस्था प –पय प्रथमनरजलान्तरजलान्तर नाद् ग्रहतलपर्यन्त= नरजलान्तरयोरन्तरं द्वितीय नरजलान्तर जलान्तर द्वितीय जलस्थानाद् गृहत पर्यन्तं एतावता नर जलान्तरयोरन्तरं ऽऽचार्योक्तमुपपन्नम् ।१९।। अब ‘वीक्ष्य गृहाग्न सलिले प्रसार्य ‘इत्यादि प्रश्न के उत्तर को कहते हैं । हि. भा-ह के अग्र का प्रतिबिम्ब जल में पहले जहां देखा गया वहां जो नर और जाल का जो अन्तर है उसको प्रथम नर जलान्तर समझना चाहिये। एवं द्वितीय हृन प्रतिबिम्ब मैं जहां देखा गया वहां नर ऑर जल का जो अन्तर है उस को द्वितीय नर जलान्तर समझना चाहिये । दोनों जलस्थानों के अन्तर (जलापति) में जो भूमि है उसको प्रथम द्वितीय नर जलान्तर के अन्तर से भाग देने से शो लब्धि हो उसको दो स्थानों में स्थापित करना एक