पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः (भागः ४).djvu/२२३

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                           उपपति |
   यहां संस्कृतोपपत्त्ति में लिखित (१) क्षेत्र को देलिये | प = प्रथम जलस्थान | प = द्वितीय जलस्थान | य + प्रथमनर (द्रष्टा) स्थान, य = द्वितीय नरस्थान, गम = गृहोच्च्रिति, पप = जलान्तर = जलाप़सृति यय = रर = नरान्तर, इन दोनों का अन्तर = यय पप | मपप, मरर सजातीय त्रिभुजद्वये के क्रम से भग, सख बहिर्लम्ब हॅ | तब मख = रर दोनों पक्षों में रुप घटाने से भख - १ = रर - पप = यय - पप भ्रतः मग = मग = नरजलान्तर का भ्रन्तर = गृहो च्च्रिति | भ्रथ गमप, परय, जात्व त्रिभुजद्वय के सजातीयत्व से पय पप = गप = प्रथमजल स्थान से गृह्तलपर्यन्त = प्रथम नर जलान्तर X जलान्तर, इसी तरह् द्वितीयनरजलान्तर X जलान्तर = द्वितीय जल स्थान से गृह्तल पर्यन्त; इससे भ्राचार्योत्क सूत्र उपपृत्र हुग्रा इति |
                    इदानीमुच्च्रितिमाह |
              चायापुरुषच्चिन्नं जलकुडयान्तरमवाप्तमारूढिः |
              भ्रव्यायो विशत्यार्यारगामेकोन विंशोअयमृ |
         सु भु - चायाया यः पुरुषः शङ्कुभागस्तेन जलभित्योरन्तरं भक्तमत्र यदवाप्तं सा भित्तेरारूढिरूच्च्रितिर्भवति | जलाद्यावताअन्तरेरग नरो भित्यग्रपतिबिबब्ं जले पश्यति तदन्तरमेवात्र नरस्य चाया कल्प्या । अर्कतेजसो या भित्तेश्चायाग्यातव्या । शेषं स्पष्टार्थम् ।