१२८४ ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते सावन से भी होता है ‘गोलाध्याय में सावनान्यवमानि स्युश्चन्द्रभ्यः साधितानि चेद्इत्यादि श्लोक की मिताक्षरा में भास्कराचार्याक्त से स्पष्ट हैअतः कल्प चान्द्र दिन में यदि कल्पा- वम पाते हैं तो गतचन्द्र दिन में क्या इस अनुपात से सशेष (शेष सहित) गतावम आता है। . कल्पावम x गतचांदि। उसका स्वरूप= गतावम+ दोनों पक्षों में कल्पचांदि कल्पचांदि कल्पावम x गतचांदि-अवमशे इसको घटाने से गतावम, यहां यदि कल्पावम को भाज्य, कल्पचादि अवमशेष को ऋणक्षेपकल्पचन्द्र दिन को हार कल्पना की जाय तब कुट्टक विधि से जो गणक होता है वही गतचान्द्रदिन गततिथि होती है। वहां आचार्य ने ऋणात्मक रूप क्षेप में स्थिर कुट्टक साघन किया है वही अवमशेषका गुणक पठित हैं। दृढ़ावम और दृढ़चान्द्र दिन का कल्पावमदि – २५०८२५५०००० ५०००० x५०१६५१ श्रानयन करते हैं कल्पचदि १६०२९६०००००० ५००००X३२०५६८० _५०००० xx५५७३६ - ५५७३६ - दृढ़ावमदि अतः चान्द्रदिन ही हर ५०००० xxx ३५६२२० ३५६२२० दृढ़चांदि सिद्ध हुआ । गणितागत अवमशेष को५००००४९ इससे भाग देने से जो लब्ध होता है वह यहां अवमशेष समझना चाहिये । ११ श्लोक में अवशिष्ट जो अन्य प्रश्न हैं उन सबों के उत्तर अवमशेष से अहर्गण साधन कर उस अहर्गण से करना चाहिये । तथा €२ श्लोक में जो प्रश्न हैं उन सबों के उत्तर कुट्टक विधि से स्पष्ट हैं; आचार्यों ने भी इसी कारण से उनके उत्तर नहीं कहे हैं इति ॥६५॥ इदानीं पुनः प्रश्नान्तरं तदुत्तरं चाह। ए भागकलाविकीयं दृष्ट्वा विकलान्तरं च के दोषे । ऐक्यं द्विधाऽन्तराधिकहीनं च द्विभाजितं शेषे ॥६६॥ सु. भू-भागविकलं भागशेषं । कलाविकलं कलाशेषस् । अनयोरैक्यं तथाऽनयोविकलयोः शेषयोरन्तरं न दृष्ट्वा शेषे ते द्वे के स्त इति प्रश्नः । अथ तदुत्तरमाहैक्यमिति । ऐक्यं द्विधा स्थाप्यमन्तरेणैकत्राधिकमन्यत्र हीनं कार्यं ततो द्विभाजितं दलितं शेषे भवतः । अत्रोपपत्तिः । सङ,क्रमणगणितेन स्टा ।e६। वि. भा–भागविकलो (ग्रंशदोषं) कलाविकलं (कलाओ) एतयोरैक्च (पोगं) तथा विकलान्तरं (शेषयोरन्तरं) दृष्ट्वा ते शेषे के स्त इति प्रश्नः। ऐक्य
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