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१२६४ ब्राह्मस्फुटसिध्दान्ते
वा साठ घटाने से वगं होता ह्ं इसको करते हुए व्यक्ति गएक हैं । प्रयम प्र२न में कल्पना करते हैं भगएदि शेषमान=य, तब प्र२न के आलापानुसार ४य२+६२ यह वर्ग है, यहां वर्गात्मक प्रकृति=४ है, क्षेप=६२ तब 'इष्टभक्ते द्विधाक्षेपः' इस भास्करोक्त सूत्र से इष्ट=२ कल्पना करने से कनिष्ठ=२, रूपक्षेपीय कनिष्ठ ऑर उयेष्ठ से भावना द्वारा कनिष्ठ ऑर ज्येष्ठ अनन्त होता है, इसनिये भगाएदिशेषमान=२ हूआ । द्वितीय प्र२न मैं प्र२न के थालापानुसार ४ य२-६० यह वगं है यहां भी 'इष्टभक्ते द्विधाक्षेपः' इत्यादि भास्करोक्त सूत्र से कनिष्ठ=६, अतः भगराएदिशेषमान=६ हूआ । एवं वर्गात्मक प्रकृति मैं ऑर ऋराक्षेप मैं अधिक संख्या से कनिष्ठानयन करना चाहिये इति ||७६||
इदानीमन्यं प्र२नमाह ।
इष्टभगरएदिशेषं द्विनवत्यूनं उयशीतिसन् गुरिएतम् । रूपेराए युतं खगं कुर्वन्नावत्सराड् गराएकः ||७६|| सु भा --इष्टभगराएदिशेषं द्विनवतिभि ६२ रूनं कार्यं शेषं न्न्यशीति ८३ संगुरिएतं रूपेरा युतं च वर्गभावत्सरात् कुर्वन्नपि स गराकोअस्तीति । इस्ष्टभगरादिशेषमानम्=या । ततः प्र२नालापेन- ६३ (या-६२)+१=६३ या-६३*६२+१ =८३ या --७६३६+१=८३ या --७६३५ =इ२ या = (इ२+७६३५)/८३ अत्र यदि इ=१ तदा या=६२ इदमेव भगरादिशेषमानम् ||७६||
वी भा इष्टभगरएदिशेषं द्विनवत्या १२ हीनं शेषं न्नयशीति ८३ गुरिएतमेकेन युतं वर्गः स्यादित्वावत्सरात् कुर्वन् स गराकोअस्तीति । कल्प्यते इस्ष्टभगरादिशेषमानम्=य, तदाआलापानुसारेरए ६३ (य-६२)+१=८३ य ८३*६२+१=८३य-७६३६+१=८३य-७६३५ श्रयं वर्गः स्यात् कल्प्यते ८३य-७६३५=इ२ पक्षो ७६३५ युतो तदा ८३य=इ२+७६३५ पक्षो ८३ भक्तो तदा (इ२+७६३५)/६३=य, अत्र यदि इष्टम्=१ तदा य=७६३६/८३=१२ इत्येव भगरादिशेषप्रमानम् ||७९||
अव अन्य प्र२न को कहते हैं ।
हि भा इष्ट भगरादिशेष मैं ६२ घटाने से जो शेष रहता है उसको ८३ से गुरएकर एक जोडने से वर्ग होता हैं एसको करते हुए व्यक्ति गरएक हैं । यहां कल्पना करते हैं भगरादिशेषप्रमानम् =य, तब प्र२न के भालापानुसार् ८३ (य-६२)+१=८३य-७३२६