भूमिका
ब्रह्मगुप्त और ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त
श्रीचापवशतिलके श्रीव्याघ्रमुखे नृपे शकनृपाणाम्। |
जन्म काल : ब्राह्मस्फुट सिद्धान्त के संज्ञाध्याय में आचार्यों की इस उक्ति के अनुसार ५२० शाकवर्षे में आचार्यं ब्रह्मगुप्त का जन्म हुआ । तीस वर्ष की आयु में ही उन्होंने ब्रह्मस्फुट सिद्धान्त नामक ज्योतिष के इस महान् सिद्धान्त ग्रन्थ का प्रणयन किया। इनके जन्म काल नाम के अन्त में लग 'गुप्त' शब्द प्रकट करत है कि इनका जन्म वैश्य कुल के एक संपन्न परिवार में हुआ था। ज्योतिषशास्त्र कें यह प्रकाण्ड पण्डित थे—इसी से रीवां नरेश व्याघभटेश्वर ने इन्हें अपना प्रधान ज्योतिषी बनाकर सम्मानित किया।
जन्म स्थान : इनके जन्म स्थान के सम्बन्ध में कोई मत विभिन्नता नहीं। पाश्चात्य विद्वानों की इस दिशा में खोज की जो उपलब्धि हुई है, उसके अनुसार इनका जन्म गुर्जर देशान्तवर्त भिनमाल नामक गाँव में हुआ। गुर्जर प्रदेश के ज्योतिषियों की जन्म स्थान सुखकथा से भी इस बात का समर्थन होता है। गुर्जर प्रदेश की उत्तर सीमा में मालव (मारवाड़) देश से दक्षिण दिशा की ओर आबू पर्वत और गुण नदी के मध्यवर्ती पर्वत से वायुकोण में भिनमाल नरम का गाँव अब भी स्थित है।
ब्रह्मोक्त ग्रहगणितं महता कालेन यत् खिलीभूतम्। |
रचना : आचार्य की इस उक्ति से स्पष्ट ज्ञात होता है कि नलिकादि से वेधद्वारा दृग्गणितैषय (वेघागत और गणितागत प्रहादिकों की तुल्यता) कारक प्रहादि समथन के कारण विष्णुधर्मोत्तर पुराण के अन्तर्गत अति प्राचीन सिद्धान्त को ही अगम मानकर उसका संशोधन करके आचार्यं ब्रह्मगुप्त ने नवीन प्राह्मस्फुट सिद्धान्त की रचना की।
इस (ब्राह्मस्फुट सिद्धान्त) की चतुर्वेदाचार्यं कृत 'तिलक' नाम की टीका प्रसिद्ध थी—वह इख समय संपूर्ण उपलब्ध नहीं है। 'कोलब्रुक' नामक पाश्चात्य विद्वान् को वह