पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः भागः २.djvu/९०

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७३ जोड़ने से स्पष्टसावन होता है, गोलसन्धि बिन्दु को केन्द्र मानकर कान्तिवृत्तीयमध्यमरवि सुजांश व्यासर्घवृत्त करने से नाडीवृत्त में जहां लगता है वहां से गोल सन्धि बिन्दु तक नाड़ी- वृत्त में मध्यमरविग तिकलातुल्यासु है, नाक्षत्र षष्टि (६०) घट में मध्यमरविगतकला तुल्यासु को जोड़ने से मध्यम सावन होता है। इन दोनों (स्पष्टसावन और मध्यम-सावन) के अन्तर करने से मध्यमरविगतकलातुल्यासुमध्यमरविगतिकलोत्पन्नासु= उदयान्तरासु, एतत्सम्बन्धिग्रहगति प्रमाण लाते हैं जैसे यदि अहोरात्रासु में ग्रहगति कला पाते हैं तो उदयान्तरासु में क्या इस प्रनुपात से उदयान्तरासु सम्बन्धिनी ग्रहगति आती है ग्रहगतिकला उदयान्तरास् , अहोरात्रासु =उदयान्तरासु सम्बन्धिनी ग्रहगति, इसको अहर्गणोत्पन्न ग्रह में घटाने से और जोड़ने से निरक्षक्षितिजस्थ (क्रान्तिवृत्तस्य मध्यमरविगत ध्रुवम्रोतवृत्त नाडीवृत्त सम्पात बिन्दुक) ग्रह होते हैं। इसी विषय को सिद्धान्त शिरोमणि में भास्कराचार्य 'मुध्याको भुक्ता प्रसवो निरक्षे ये ये च मध्याकंकला ‘समाना’ इत्यादि से कहते हैं। लेकिन उदयान्तरासु के मध्य में भी ग्रह की कुछ गति होगी । उस गति का ग्रहण भास्कराचार्य नहीं किये हैं, इसलिए पूर्वं प्रदशत उदयान्तरासुसम्बन्धिनी ग्रहगतिसम्वन्ध से जो निरक्षक्षितिजोदय कालिक ग्रह लाये हैं सो ठीक नहीं है इसलिए आस्करोक्त उदयान्तरानयन ठीक नहीं है, यह सिद्ध हुआ । अब वास्तव उदयान्तर साधन करते हैं। वास्तव उदयान्तर प्रमाण=य मानते हैं, इसी से औदयिक ग्रह होते हैं, इस उद यान्तर काल में ग्रह की जो गति होती है, तदुत्पन्नसु करके संस्कृत भास्करोक्त उदयान्तर वास्तव उदयान्तर होता है । यथा यदि अहोरात्रासु में रविगतकला पाते हैं तो वास्तवोदया न्तरा (य) सु में क्या इस अनुपात से वास्तवोदयान्तरासु सम्बन्धिनी रविगत कला प्राप्त है, रविगकला ४य एकासुजरविग¥य, फिर अनुपात करते हैं यदि राशि कला (१८००) में अहोरात्रसु उस राशि का उदयासु पाते हैं तो वास्तवोदयान्तरासुसम्बन्धिनी रविगतकला में क्या इस अनुपात से तत्सम्बन्धि असु प्रमाण आता है राहयुदयासुXवास्तवोदयान्तर संरविगतिक १८०० राश्युदय ¥रविगतकलाय १८००४अहोरात्रासु =एकासुजरविगति ४१ कलोत्पन्नांसुxय(१) राश्युदय X१ =१ कलोत्पन्नासु, भास्करोक्तोदयान्तर में (१) इसको संस्कार करने से १८०० वास्तव उदयान्तर होता है, अत: भास्करोक्तोदयान्तर # एकासुजरविग ४१ कलोत्पन्नासु य=य=पूर्वोदयान्तर ¥ एकसुजरविग १ कलोत्पन्नासु xयसमशोधन करने से य+ एकासुजरविग ४१कलोत्पन्नासु xय=पूर्वोदयान्तर=(१+एकासुजरविगx१कलोत्पन्नासु) पूर्वोदयान्तर (क) १+एकासुजरविगx१कलोत्पक्षासु