पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः भागः २.djvu/५५९

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शह्मस्फुटसिद्धान्ते कॉर्पा ' *(या:ज्याय ')=ज्या'*(नयाई -ज्याय ), या ज्या 'प. कोज्या " =ज्या*ज्या'

प. या

. . ज्या *-. ज्या '५ ग-- =ज्याय• प==, अतः - म २ कोज्यारें म -

ज्य

या' (") अत: =ज्य कोज्या मूल लेने से प्याय । मान विदित हो जायगा, तब 'य' के दोनों तरफ आये हुये स्थिराङ्क के बराबर दो गान होगा, तब उसके ऊपर सम्ब, -* इसके बराबर होता है । भगोल विमण्डल वा के उपयोगी भिन भी सिद्धान्त लिखते हैं । विषम सूची में सूची शीर्षस्थान से प्रषर वृत्त धरातल के ऊपर जो सम्ब होता है उसके मूल से आधार वृत्त की प्रतेक पूर्णज्यायें कर देना, सूची शीर्ष स्थान से प्ररयेक पूऍज्या के दोनों प्रान्तों में रेख करने से पूर्णया भर उसके प्रान्तद्वयगत रेखाओं से जितने त्रिभुज बनते हैं उनमें किस त्रिभुज का शिरकोण सर्वाधिक होता है इसके लिये बिंचार करते हैं । पूर्णेज्या के खण्डद्वय प्र, हि, परभाषिक कर्ण, परमापकर्णी मर पूर्णज्या (माघार वृत्तव्यास) से उत्पन्न विभुज में पूर्णघ्या (आधार वृत्तव्यास) के खण्डद्वय प्र हि, है सम्ब भौर पूएंज्याग्रगत कणों से उत्पन्न कोणय को, कों, है । लग और परमापकखं तथा। परमाधिकरुणं से उत्पन्न कोणय को, कों, हैं, तन मन - सको,N=पक्षे तया =पको, दा -:स्पको, तब ‘कोदण्ड


सम् पणं रेखा इत्यादि सूत्र के स्प (क+ओ)=पूऍज्या शान्त इव गत कलॅपल कोणस्य=